Best emotional poem- रोष
रोष
मानव जब रोष में होता हैं,
तब कहा होश में होता हैं।
सुन्दर काया पे अग्नि वियाप्त,
आभा को अपनी खोता है।
वैभबता उसकी जाती है,
उत्कर्ष न उसका होता है।
हृदयघात, पाक्षाद्यात,अवसाद
तलक को ढोता हैं।
हृदयघात, पाक्षाद्यात,अवसाद
तलक को ढोता हैं।
जैसे पुष्प मुकुल बिना अब,
फूल कही नही होता हैं।
वैसे ही क्रोध का त्याग बिना,
मानव ,दानव ही होता हैं।
दानवी दुनिया की सच्ची खबर,
अखबार में निश दिन होता है।
अपना सब कोप में जला दिया,
फिर जाने किस पे रोता हैं।
सिन्धु किनारे क्रोध में जो,
धैर्यवान हो सकता है।
रघुपति ऐसा कर सकते है,
मानव से हो नही सकता हैं।
मानव जब रोष में होता है।
सौभाग्य को अपने खोता हैं।
मानव जब रोष में होता है।
सौभाग्य को अपने खोता हैं।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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