Best emotional poem-मजदूर कि चिकीर्षा
मजदूर कि चिकीर्षा
चिकीर्षा लिये एक दम्पत्ति खड़ा दिखा चौराहे पर।
तपती गर्मी में जिंदगी की जंग लिये दौराहे पर।
उनके बच्चें उबारा में कुद-कुद कर नहा रहे।
उनके बच्चें उबारा में कुद-कुद कर नहा रहे।
एक दुधमुँहा बच्चा था,आँचल में सु-सु बहा रहे।
दुर्निवार था उसका जीवन चेहरे पे संताप ना था।
दुर्निवार था उसका जीवन चेहरे पे संताप ना था।
मेहनत कर रोटी जोहना ये तो कोई पाप ना था।
नीम छावं में बैठी थी वो किसी काम की आश मैं।
नीम छावं में बैठी थी वो किसी काम की आश मैं।
जठरागिनी की मार परे तो चीर कहाँ से आने थे।
घंटों इंतजार कर के जब आंखें उसकी पथरा गई,
घंटों इंतजार कर के जब आंखें उसकी पथरा गई,
तभी चौपहिया आते देख खड़ी होकर घबरा गई।
लालबत्ती की गाड़ी थी, दिखने में बहुत ही प्यारी थी,
लालबत्ती की गाड़ी थी, दिखने में बहुत ही प्यारी थी,
उससे निकला एक नौजवान किसी नेता की फुलवारी थी।
मेहनती मजदूर बेचारा उस गाड़ी को ही देख रहा,
मेहनती मजदूर बेचारा उस गाड़ी को ही देख रहा,
गाड़ी से निकला दुराचारी नारी से आँखें सेक रह।
मुकदर्शक बना मजदूर बेचारा नजरें को तो भाँप लिया,
मुकदर्शक बना मजदूर बेचारा नजरें को तो भाँप लिया,
अपने कोप में घुट रहा था,जाने किस का श्राप लिया।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
संपर्क सुत्र:-9205028055
संपर्क सुत्र:-9205028055
Good one ...!!!
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