Best emotional poem-जीर्ण शरीर की आश
जीर्ण शरीर की आश
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
तेरे खातिर हमनें अपना,बदल दिया इतिहास रे बेटा।
जब तुम थे नन्हा सा फरिशता ,तब से अपना खून का रिश्ता ।
अंगुली पकड़ चलना सिखलाय,तोतली को में शुद्ध कराया ।
मम्मी की फटकार पड़ी तो,आते थे मेरे पास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
घोड़ा बनकर सैर कराता,बिल्ली बनकर तुझे रिझाता।
तुझे हसॉने के खातिर,बनता अपना उपहास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास हैं बेटा,जीर्ण शरीर की आश है बेटा।
तुम मेले में लेटा करते,खिलोनों की जिद किया करते,
तेरी हर ख्वाइस के आगे,हो जाता उदास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
अपने बसन का छेद छुपाया,मैं स्कूल का शुल्क चुकाया।
तुम्हे जीवन में आगे बढ़ाया,बड़ी उम्मीद से तुझे पढ़ाया,
मेरी इस आशा को अब तुम,मत करना निराश रे बेटा,
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
जिंदगी के इस रंगमंच पे,हमने तुमको खुद से सिंचा,
तभी तो अब में तुमको समझु,अपना तु है खास रे बेटा।
तेरे ज्वर में कई दिनों तक,लेता था अवकाश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
सपनों में मेरे पंख लग गये,में बन गया आकाश रे बेटा।
तुम चाहो तो कर सकते हो,जीवन में प्रकाश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
खुद से तुमनें बहु देख ली, मैं हो गया निराश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
खुद से तुमनें बहु देख ली, मैं हो गया निराश रे बेटा।
मेरी हर बातें अब तुमकों,लगती हैं बकबास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
बहु आई तो तु करता है,मेरे पे अट्टास रे बेटा।
जो मेरा था बहु का हो गया,इतना खासम- खास रे बेटा।
मुझको गली का दुब बनाकर,तु बन गया पलाश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा,जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
मत कर ऐसी गलती ,कल तु भी बनेगा बाप रे बेटा।
छ्न से मेरे सपने टुटे,पानी है पर प्यास ना बेटा।
तु मेरा विश्वास रे बेटा, जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
अपनी माँ की चिंता कर ले जिसका तु एहसास रे बेटा।
क्रोध में आ के मैं कहता था, तू है मेरा त्रास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास है बेटा जीर्ण शरीर की आश है बेटा।
माता की ही सेवा कर ले मत दे उसे सन्त्रास रे बेटा।
तेरे बिन हम कैसे सहेंगे दुनिया का उपहास रे बेटा
तु मेरा विश्वास रे बेटा, जीर्ण शरीर की आश रे बेटा।
अपनी माँ की चिंता कर ले जिसका तु एहसास रे बेटा।
क्रोध में आ के मैं कहता था, तू है मेरा त्रास रे बेटा।
तु मेरा विश्वास है बेटा जीर्ण शरीर की आश है बेटा।
माता की ही सेवा कर ले मत दे उसे सन्त्रास रे बेटा।
तेरे बिन हम कैसे सहेंगे दुनिया का उपहास रे बेटा
मरने से पहले बन गये हैं हम तो जिन्दा लाश रे बेटा।
तु मेरा विश्वास है बेटा, जीर्ण शरीर की आश है बेटा
तेरी खातिर हमने अपना,बदल दिया इतिहास है बेटा।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
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