Best hindi poem-देवकीनंदन

        देवकीनंदन    

जंगल की आग तो बुझ जाती,
एषणा मेरी बुझाए कौन।
है! देवकी  नन्दन गोपाला,
अब ऐसे क्यों बैठे हो मौन।
कुलीन यहाँ है व्यभिचारी,
नारी की लाज बचाये कौन।
पतिव्रता यहाँ अब झुठी हैं,
वात्सल्य गीत अब गाए कौन।
यर्थाथवाद में झुठा हूँ,
तेरा वंदन अब गाए कौन।
हर घृणित कार्य मानव करें,
फिर इसको अब समझाए कौन।
द्वापद में तुमसे लाज बची,
कलयुग में क्यों बैठे हो मौन।
भक्तों की रखो लाज प्रभु,
तेरे बिना अपना हैं ही कौन।

                   अनिल कुमार मंडल
              लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

एषणा--/संसारिक वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा
कुलीन--/जो उच्च कुल में उत्पन्न हुआ हो
व्यभिचारी--/चरित्रहीन
यथार्थवाद--/सच कहने वाला

                                                         
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