Best emotional poem-वाणी
वाणी 💐*****💐
आज तुझे मैं सिखलाता हुँ,
सुखमय रहने का वो मन्तर ।
कौआ -कोयल में होता हैै,
केवल वाणी का हीअन्तर।
दोनों का रंग काला सुन्दर,
जाने किसको क्या मिला वर।
कर्कश बोली पाता रहता हैै,
हर घड़ी अपमान निरन्तर।
तीखी बोली से अच्छा हैै,
मुख से निकले मुक भरा स्वर।
जैसे चुप-चाप छला करते हैं।
प्रातः आकर निशा दिवाकर।
रात्री में विचरण करता हो,
जैसे शांत विधु निशाचर।
आज तुझे मैं सिखलाता हुँ,
सुखमय रहने का वो मन्तर ।
मिठी बोली में बसता है,
हर हमेशा सुन्दर नागर।
बारिश में बढ़ता हो जैसे,
घटी हुई दरिया का अस्तर।
अपना गुण भी बढ़ता जाता,
चाहे दिल्ली हो या बस्तर।
वाणी से कई बार हो जाता,
रुका काम भी पुरा अक्सर।
मधुरभाषी तुम बन जाओ अगर ,
धन्य रहोगे तुम जीवन भर।
कटु वचन कहने से पहले,
झाँक लिया करो अपने अन्दर।
आज तुझे मैं सिखलाता हुँ,
सुखमय रहने का वो मन्तर ।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
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