Best emotional poem-मेरी माँ

          मेरी माँ

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सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ, 
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।
जब सूक्ष्म था मैं उनके उदर में,
अपना रक्त पिलाती थी माँ।
सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ,
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

            नन्हा सा था मैं जब इनमें समाया,
            मेरी नन्ही हरकत पे थोड़ा शर्मायी,
            थोड़ा शर्म खा के बापू को बता के, 
            मेरी हरकतोो पेे खिल खिलाती थी माँ।
            सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ,
            मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

नौ महीने मुझको अपने अंदर बैठाया,
मेरे लिए अपना सौंदर्य गवाया,
मेरे जैसे बालक को दुनिया मे लाके,
मेरे रोने पे भी मुस्कुराई थी माँ,
सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ,
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

               साँस लेना मुझको मेरी माँ ने सिखाया,
               मेरे लिए की मुहल्ले में लड़ाई,
               मेरी औछी हरकत पे गुस्सा वो होके,
               बहुत तेज मुझपे चिल्लाती थी माँ।
               सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ।
               मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

ठुमक-ठुमक चलना मुझको सिखाया,
तोतली भाषाओ में शुरु कर ली पढ़ाई,
वो व्यंजन बनाके वो खाना खिलाके,
सत्कर्म की पहचान कराती थी माँ।
सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।
                 
                 मेरी हर शैतानी को बापू से बताया,
                 डाँट न पङ जाए थोड़ी सी धुपाई,
                 झाड़ू , बेलन,कंघी,वो चिमटा दिखाके,
                 सदगुण की पाठ पढ़ाती थी माँ।
                 सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ
                 मुझे हर दुखों से बचाती है माँ।

नौकरी जब लगी तो में परदेश आया,
थोड़ा पैसा थोड़ी सी शोहरत कमाई,
शहर दो शहर उनको लाया घुमाके,
मेरी हर खुशी पे इतराती हैं माँ,
सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ,
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

                    शहरी जिन्दगी को ना अच्छा बताया,
                    बहुत ही मनाया ना उन्हें रास आई,
                    मुझको यहाँ लाके काबिल बनाके,
                    क्यों मेरे पास रहने ना आती हैं माँ।
                    सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ।
                    मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।

बुढ़ापे का मुझको सहारा बताके,
बुढ़ापे में रहने ना मेरे पास आई।
अपने सुत को अपने हिय का रस पीलाके,
क्यों सेवा से वंचित रह जाती हैं माँ।
सफलता की सीढ़ी चढ़ाती हैं माँ।
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।
मुझे हर दुखों से बचाती हैं माँ।


                      अनिल कुमार मंडल
                 लोको पायलट/ग़ज़िआबाद
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