Best hindi poem-सुरक्षित रेल
सुरक्षित रेल
जल रहा तरु का अंग- अंग,
शाँखाए जल रही चंद-चंद,
खग मर रहे बिना हो नीर संग,
बाहर जल रहा हैं अंग-अंग,
घर के अंदर तिमिर का संग,
उड़ रही भूमि हो खंड-खंड,
दिनकर दहाड़ता हैं प्रचंड,
बच्चें बैठे हैं अर्ध-नंग,
पत्थरों में बिछी हैं लोह-दंड,
लोहपथ-गामिनि को मैं भगा रहा,
पसीने से मैं नहा रहा,
तप रहा था हर एक रेल खंड,
रवि फेक रहा मुझ पर शोला
धरा दे रही मुझको ज्वाला,
मेरे अनिल तू धीरज धर,
तू भी होगा नम एक पहर,
वो दूर गाँव बीराने में,
वो मेघो काे हर्षाने में,
जल रही कही वो ज्योति अखंड।
ऐसे में रेल चलाये कौन,
इंजन भट्टी में जाये कौन,
हमने तो बस इतना चाहा,
काली ना हो मेरी काया,
मन की शीतलता बनी रहें,
तन की शीतलता बनी रहें,
पर इतना तुम तो दे न सके,
आशीष हमारी ले ना सके,
जिस दिन घटना हो जाएगी,
लिखना पड़ जाएगा निबंध,
ऑन ड्युटी होने से पहले,
लड़ना पड़ता हैं एक द्वंद्ध,
सुरक्षित रेल चलती रहे,
ऐसा कीजिये कुछ तो प्रबंध।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
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