Best hindi poem-रेल चालक
रेल चालक
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दौड़ाता चला मैं भगाता चला मैं,
भारतीय रेल को लहराता चला मैं।
चढ़ा इंजिनों पे बखूबी निहारा,
हेडलाइट भी देखी प्रेशर भी देखा,
जरूरत पे गाड़ी बढ़ा के भी देखा।
सिग्नल एक्सचेंज करके फिर सीटी बजाई,
धीमे-धीमे गाड़ी बढ़ाता चला मैं।
स्टार्टर पार करके जब एडवान्स आया,
हरा देख नाँच लगाता चला मैं,
स्पीड जब 60 पहुँचा तो मैंने,
गाड़ी में ब्रेक लगाके भी देखा,
सी/फा बोर्ड आया तो सीटी बजाई,
लगातार सीटी बजाता चला मैं।
दुर्घटनाएं भी रोकी नुकसान भी रोका,
अपना कर्म निभाता चला मैं।
भारतीय रेल को दौड़ाता चला मैं।
नाले नहर क्या और खेतों शहर क्या,
सभी से करीबी मिटाता चला मैं।
मंदिर भी आया मस्जिद भी आया,
पर अपना घर्म भुलाता चला मैं।
सभी यात्रियों को बिना भेदभाव के,
अपनी-अपनी मंजिल पहुँचाता चला मैं।
ना मेरा कोई जाति ना मेरा है मजहब,
मधुशाले सा फर्ज निभाता चला मैं।
दिवाली भी आया मुहर्रम भी आया,
वैशाखी का मंजर भुलाता चला मैं।
दोड़ाता चला मैं भगाता चला मैं।
भारतीय रेल को दौड़ाता चेला मैं।
क्या गर्मी,क्या सर्दी,क्या आँधी क्या तुफा,
सभी मौसमों की थपेड़ों को मंडल,
सहज भाव से ही पचाता चला मैं।
दोड़ाता चला मैं भगाता चला मैं।
भारतीय रेल को दौड़ाता चला मैं।
चला दिल्ली से में कानपुर आके पहुँचा,
लगातार गाड़ी चलाता आया मैं,
8 घंटे लगातार गाड़ी चलाया,
न लघुशंखा गाया ना बड़ी शंखा पाया,
बीमारी शरीर में बढ़ाता चला मैं।
रेडिएशन का खतरा इस कदर हम पे छाया,
जवानी में बाल पकाता चला मैं।
दोड़ाता चला मैं भगाता चला मैं।
दोड़ाता चला मैं भगाता चला मैं।
भारतीय रेल को लहराता चला मैं।
अनिल कुमार मंडल
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