Best Emotional poem-मनु

               मनु

कही आतिबृष्टि कही आनाबृष्टि,
ये कैसे रो रही हैं सृष्टि।
मानव के तो हैं दो-दो नयन,
पर खो दिया इसने अपनापन
जब से इसने दे डाली हैं,
प्रकृति के उपर कुदृष्टि।
जन्मांध यहाँ तो अच्छे हैं,
पज्ञाचक्षु है सच्चे हैं,
उनकी आखें निशप्राण जो हैं,
कही पड़ती नही इनकी कुदृष्टि।
कही आतिबृष्टि कही आनाबृष्टि,
ये कैसे रो रही हैं सृष्टि।

हे। भवसागर के निर्माता,
हे। त्रिचक्षु हे। विधाता,
अब हरा भर हो हर उपवन,
हरी बनी रहे जंगल, कानन,
उतनी ही बारिश वहाँ पे हो,
जीतने में हो मनु की तृप्ति।
इस जग में प्रीति बनी रहे,
खिलखिला उठे फिर से सृष्टि,
कही आतिबृष्टि कही आनाबृष्टि,
ये कैसे रो रही हैं सृष्टि।

                       अनिल कुमार मंडल
                 लोको पायलट/गाजियाबाद

                                                                     
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