Best emotional poem-हलधर

          हलधर

 सावन में उदभिज भर आया,
 मेह ने अपना रंग दिखाया।
 त्रिविधवायु का झोंका लाया।
 उपत्यका में जल भर आया,
 उबारा ने नीर बहाया,
 कृषक का पथप्रदर्शक आया।
 मुक्तकंठ वो झूमा गाया,
 पैतृक भूमि में हल चलवाया,
 उर्वरा अपना खेत बनाया,
 फिर उसमें वह धान बोआया।
 एकाहारी बना रहा और,
 एड़ी चोटी एक कर आया।
 सावन में  उदभिज भर आया।
 मेह ने अपना रंग दिखाया।
एषणा  की आग बुझाने को ,
शस्य लिए जब मंडी आया,
अपने अन्न का भाव वो सुनकर,
औंधे मुंह गिर सर फोड़वाया।
अन्न बेच वो घर को आया,
बच्चों का सामान ले आया,
अपना पदत्राण नहीं ले पाया,
दुर्निवार वह जीवन पाया,
जिंदगी से वह हार मान के,
नवि से अपना सर लटकाया।
हमको रोटी खिलाने वाले,
हलधर के घर मातम छाया,
सावन में उदभिज भर आया,
मेह ने अपना रंग दिखाया।


             अनिल कुमार मंडल
        लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद   


उदभिज--जो घरती फोड़ कर जनमता है
मेह--बर्षा
त्रिविधवायु--शीतल,मंद,व सुगन्धित वायु
उपत्यका--पहाङ के किनारे की भुमि
उबारा--कुऐं के पास जमा हुआ पानी
        का गड्ढा जिसमें जानवर पानी पीते है
एषणा--सांसारिक वस्तु प्राप्त करने की इच्छा
शस्य--अनाज
दुर्निवार--कठिनाई से गुजर बसर होना।
नवि--गाय दुहेन की रस्सी

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