Best emotional poem-पापा जी
पापा जी
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रेल चला कर जल्दी से तुम,घर आ जाना पापा जी,
पिछली होली जैसे गुजिया, बाद में खाना पापा जी,
दिन नया है साल नया है, पार्टी करेंगे पापा जी,
होली के रंगों में रंगकर, सेल्फी लेंगे पापा जी।
लॉबी से जब फोन है आते,झटपट तुम घर से चले जाते,
असमय माता को जागते, हमें सुलाकर ड्यूटी जाते,
मेरा आप की ड्यूटी से क्या, लेने देना पापा जी,
छोटा सा मै छोटे मेरे सपने,तोड़ न देना पापा जी,
एक दिन की छुट्टी ले लो,जन्मदिन मै पापा जी,
लिजनिलैंड जो बोले थे,वो हमे घुमा दो पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से तुम,घर आ जाना पापा जी,
रक्षा बंधन आये तो,बुआ से मिलेगें पापा जी,
दिवाली के दीप न तुम बिन,हमें सुहाता पापा जी,
दुर्गा पूजा में आके, झूला झुलबाते पाप जी,
बानो के घर मिलजुल कर के,ईद मानते पापा जी।
दुनिया जब उत्सब मानते, तुम उसमें हो खुशियां पाते,
तीज त्योहार तुम्हारे छुटे, सण्डे को भी ड्युटी जाते,
लेकिन छ्ठ पुजा में आके,अरग दिलाना पापा जी,
दादी के हाथों का लडुआ,नही भुलाना पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से,तुम घर आ जाना पापा जी।
गर्मी की जब छुट्टी होती, माता के संग मैं ही होती,
माता की फटकार पड़ी तो, कभी-कभी छुप-छुप के रोती,
तेरा वो प्यारा आलिंगन, बहुत रुलाता पापा जी,
जीवन के कुछ मीठे लम्हे ,हमें दिल दो पापा जी,
पिय संग बैठे याद करूँगी, स्वपन सुहाने पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से तुम, घर आ जाना पापा जी।
अनिल कुमार मंडल
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रेल चला कर जल्दी से तुम,घर आ जाना पापा जी,
पिछली होली जैसे गुजिया, बाद में खाना पापा जी,
दिन नया है साल नया है, पार्टी करेंगे पापा जी,
होली के रंगों में रंगकर, सेल्फी लेंगे पापा जी।
लॉबी से जब फोन है आते,झटपट तुम घर से चले जाते,
असमय माता को जागते, हमें सुलाकर ड्यूटी जाते,
मेरा आप की ड्यूटी से क्या, लेने देना पापा जी,
छोटा सा मै छोटे मेरे सपने,तोड़ न देना पापा जी,
एक दिन की छुट्टी ले लो,जन्मदिन मै पापा जी,
लिजनिलैंड जो बोले थे,वो हमे घुमा दो पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से तुम,घर आ जाना पापा जी,
रक्षा बंधन आये तो,बुआ से मिलेगें पापा जी,
दिवाली के दीप न तुम बिन,हमें सुहाता पापा जी,
दुर्गा पूजा में आके, झूला झुलबाते पाप जी,
बानो के घर मिलजुल कर के,ईद मानते पापा जी।
दुनिया जब उत्सब मानते, तुम उसमें हो खुशियां पाते,
तीज त्योहार तुम्हारे छुटे, सण्डे को भी ड्युटी जाते,
लेकिन छ्ठ पुजा में आके,अरग दिलाना पापा जी,
दादी के हाथों का लडुआ,नही भुलाना पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से,तुम घर आ जाना पापा जी।
गर्मी की जब छुट्टी होती, माता के संग मैं ही होती,
माता की फटकार पड़ी तो, कभी-कभी छुप-छुप के रोती,
तेरा वो प्यारा आलिंगन, बहुत रुलाता पापा जी,
जीवन के कुछ मीठे लम्हे ,हमें दिल दो पापा जी,
पिय संग बैठे याद करूँगी, स्वपन सुहाने पापा जी।
रेल चलाकर जल्दी से तुम, घर आ जाना पापा जी।
अनिल कुमार मंडल
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