Best Emotional poem- बढ़ती उम्र
बढ़ती उम्र
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अंधियारा से भय खाता हूँ,
परछाई से डर जाता हूँ।
कङी धुप में चलते-चलते,
जीवन पथ पे बढ. जाता हूँ ।
जो बीता वो अच्छा बीता,
आगे क्या मौसम पाता हूँ।
दिन भर की भागा दोड़ी,
स्वेद से जब में तर जाता हूँ।
पेट का जब भुगोल बिगडता,
सीधा वापिस घर आता हूँ।
बाहर चाहे शेर बनू मैं,
अपनों से ही भय खाता हूँ।
ताकत की ये बात नही हैं,
प्रेमपाश में पड़ जाता हूँ।
प्रेम बिना निष्ठुर हैं जीवन,
चिरंतन तुमसे कहता हूँ।
बच्चों के अरमा किये पुरे ,
देखें आगे क्या खाता हूँ।
मखमली सी सेज मिले या,
टूटा मैं बिस्तर पता हूँ।
बुरा वक्त से भय खाता हूँ,
बढ़ती उम्र से डर जाता हूँ।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
कङी धुप में चलते-चलते,
जीवन पथ पे बढ. जाता हूँ ।
जो बीता वो अच्छा बीता,
आगे क्या मौसम पाता हूँ।
दिन भर की भागा दोड़ी,
स्वेद से जब में तर जाता हूँ।
पेट का जब भुगोल बिगडता,
सीधा वापिस घर आता हूँ।
बाहर चाहे शेर बनू मैं,
अपनों से ही भय खाता हूँ।
ताकत की ये बात नही हैं,
प्रेमपाश में पड़ जाता हूँ।
प्रेम बिना निष्ठुर हैं जीवन,
चिरंतन तुमसे कहता हूँ।
बच्चों के अरमा किये पुरे ,
देखें आगे क्या खाता हूँ।
मखमली सी सेज मिले या,
टूटा मैं बिस्तर पता हूँ।
बुरा वक्त से भय खाता हूँ,
बढ़ती उम्र से डर जाता हूँ।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
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