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Showing posts from October, 2018

Best Patriotic poem-सुधा पीला दी

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                    सुधा पीला दी राजीव भैया ने सुधा पीला दी,मैं सुभाष बन जाऊँगा। गांधी बनना बस में नहीं है, सूूली पे चढ़ जाऊँगा। एक गाल पे चाटा खाके, दूजा नही बढ़ाऊँगा। अंधियारे में देश घिर रहा, दीप मैं एक सुलगाउँग। स्वदेशी से देश चेलगा, निरापद वो काम कराऊंगा। रोग न कोई घर दस्तक दे,आयुर्वेद मैं गाऊंगा। रसोई हैं औषधालय अपना, सबको मैं समझाऊंगा। राजीव भैया ने सुधा पीला दी,मैं सुभाष बन जाऊंगा गांधी बनना बस में नही हैं, सूली पे चढ़ जाऊंगा। नेहरू से ये देश न चले ,तिलक से मैं चलबाउंगा। गौ माता की सेवा करके, दूध मलाई खाऊंगा। गोरों से देश छुड़ाया हैं, काले को राह दिखाऊंगा। मानसिक गुलामी बहुत हो चुकी,अंत मैं इसे कराऊंगा। तथाकथित आजादी जी रहे, पूर्ण स्वराज मैं लाऊंगा। राजीव भैया ने सुधा पीला दी, मैं सुभाष बन जाऊंगा। गांधी बनना बस में नहीं है ,सूूली पे चढ़ जाऊंगा इतिहास हमारा पथ प्रर्दशक,धोखा नही में खाऊंगा। पिंजर बंध हो देश हमारा, ये कैसे सह पाऊंगा। गद्दारों की फौज खड़ी हैं, शंखनाद कर जाऊंगा। राजीव भैया ने सु...

Best patriotic poem-एक बबंडर

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             एक बबंडर राजनीति मलिन हो गई ,एक बबंडर आने दो, 18सौ सतावन की घटना,एक बार दुहराने दो। गोरों से देश छुड़ाया हैं, काले को राह दिखाने दो, सत्ता मद में जो डूबे हैं, रावण सा ढह जाने दो। गीता का भी सार यहीं हैं,दुष्टो को मर जाने दो, उठो युवाओं देश संभालो, फिर एक रण छिड़ जाने दो। राजनीति मलिन हो गई, एक बबंडर आने दो, इण्डिया में नैतिकता खोई, भारत मुझको बनवाने दो। संकट में हैं देश हमारा, जन-जन को समझाने दो। हलधर के घर मातम न हो, धनपति का मोह भागने दो, हर निर्धन का पर्ण कुटीर हो,दाल- रोटी ही खाने दो। धनानंद बहु सांख्यिक हो गए, एक चाणक्य जगाने दो। राजनीति मलिन हो गई ,एक बबंडर आने दो। मधुशाला में भीड़ खड़ी हैं, क्षीर की नदी बहाने दो, विदेशी का अंत कराके, देशी राग अब गाने दो, पंचभूत जो मैली हो गई, साफ इसे कर जाने दो। पुरखों ने जो देखें थे वो,सपने मुझे सजाने दो, पश्चिम ने हैं देश बिगाड़ा, पूर्वी धुन मुझकों गाने दो। राजनीति मलिन हो गई, एक बबंडर आने दो। अन्तक थोड़ा धीर धरो तुम, नेक काम कर जाने दो, हँस के आप के सा...

Best patriotic poem-परछाई

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                     परछाईं                     ++++++ विश्व बैंक से कर लेकर हमने ये वृद्धि पाई हैं। भारतीय संस्कृति लुटती रही,अपनी हुई रुसवाई हैं। पश्चिम की रस्में देख-देख अपनी औकात भुलाई हैं। प्रियंवदा ने मिडिया से युवाओं को वहकाई  हैं। फिल्मीवाले कलाकारों ने खुद अपनी लाज गवाई हैं। देश को इसने कुछ न दिया नैतिकता अपनी भगाई हैं। विश्व बैंक से कर लेकर हमने ये वृद्धि पाई हैं। नेता धन विदेश से माँगे उसकी होती वाह-वाही हैं। निर्धन अगर रोटी माँगे उसकी होती है पिटाई हैं। जिसने जितना कर लाया उतनी ही मैडल पाई हैं। जमीर बैच ये पैसा खाये,घोटालों में उसे पचाई हैं। उनके झुठे भाषण ने इस देश की नाक कटाई है। विश्व बैंक से कर लेकर हमने ये वृद्धि पाई हैं। अजन्मा भी आने से पहले कर्ज लिए सर आई है। सैकडों में कम्पनियाँ थी तब ,अब fdi की लड़ाई हैं। कुछ तो हमको करना होगा,आगे कुआं पीछे खाई हैं। सदीयो तक गुलाम रहे थे,शायद उसकी परछाई हैं। विश्व बैंक से कर लेकर हमने ये वृद्धि पाई हैं। ...

Best Emmotional poem-बचपन

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                   बचपन                  ********** बचपन के पुराने दिन साथी,हम भूल गए कमाने में। बड़ा सा घर था,बड़ा ह्दय था,सो जाते थे सिरहाने में। अनपढ़ थी वो बुढ़िया दादी,माहिर थी खाना बनाने में। निरक्षर था गाँव का काका,बहुज्ञ थे उस जमाने में। साफ पानी थी ,शुद्ध हवा था,कमी नही थी खाने में। बचपन के पुराने दिन साथी,हम भूल गए कमाने में। अर्धनग्न,गीला बसन पहने,घुमते थे हर ठिकाने में। अमृतफल चुरा के खाना,छुप जाते थे तहखाने में। इमली और चूरन के खातिर,मईया को सताने में। गिल्ली,डंडा,कौड़ी खेलना,ओलिम्पिक था उस जमाने में। बचपन के पुराने दिन साथी,हम भूल गए कमाने में। ना मोबाइल ना कंप्यूटर था,आनन्द था नदी नहाने में। गलीयों में जहाज था अपना,मुसलाधार भगाने में। उन्माद भरी इस दुनिया सेअच्छे थे हम बचकाने में। बचपन के पुराने दिन साथी,हम भूल गये कमाने में।                                   ...