Poem of love-प्रिये
प्रिये
******
कल गौधूलि की बेला में, नैना ऐसे हुए चार प्रिये।
मूकदर्शक घंटों बैठा, फिर आया एक विचार प्रिये।
सुंदरता की तुम मूरत बनो,और मैं तेरा श्रृंगार प्रिये।
मैं पर्ण कुटीर का सेवक था, घर मे था एक ही द्वार प्रिये।
तेरे पग घर पे पड़ते ही, हर और लग गया सार प्रिये।
तरनी मैं अब तक तनहा था, तू बनी मेरी पतवार प्रिये।
दिनचर्या मेरी निखर गई, जैसे बिंदिया लिलार प्रिये।
जीवन मेरा सुखमय हो गया, ऐसी बही बयार प्रिये।
बैरागी मैं बनता तो ,होती नारी की हार प्रिये।
पर तेरा रमणीय हाला पी, इतना हो गया लाचार प्रिये।
रोम-रोम पुलकित हो गाये, हर नव्ज़ में हैं झंकार प्रिये।
आपादमस्तक हम मिल जाये, अब रहे न कोई दरार प्रिये।
एक दूजे में खो जाए, ऐसा अपना संसार प्रिये।
हर जनम में दोनों मिलते रहे,एक दूजे को एतवार प्रिये।
अपना ऐसा मिलन हुआ, हैं दाता का उपहार प्रिये।
कल गौधूलि की बेला में नैना ऐसे हुए चार प्रिये।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
Comments
Post a Comment