Best Patriotic poem-सौदागर

   

           सौदागर

     जम्हूरियत के सौदागर ने,
    जुमले से आश जगा दी है।
    पतझड़ के पेड़ो से हमने,
    छाया की आश लगा ली है।
    खुद ही जिसका घर सुना,
    पितृत्व की लाश बिछा दी है।
    विकास को पैदा करने की,
    लोगों को उसने सलाह दी है।
    जिसकी जोरू न्याय को तरसे,
    महिला कानून बना दी है।
    गुरू का ऐसा तिरस्कार किया,
    एक जलती दीप बुझा दी है।
     छप्पन इंच के सीने ने ,
    भगोड़ों से हाथ मिला ली हैं।
     जम्हूरियत के सौदागर ने ,
     जुमले से आश जगा दी हैं।

    युवाओं से पकोड़े तलवाकर,
     डीग्री पाने की सजा दी हैं।
     सौराष्ट्र के जुमलेबाजों ने,
     शब्दों से हमें सजा दी हैं।
     हिन्दू-मुस्लिम हमें बताकर,
     खुद मस्जिद में दुआ की हैं।
      बुजुर्गों को कतार में लाकर,
      माताओं तक को सजा दी हैं।
      हर जुमले में छोक लगा कर,
       मन की बात सुना दी हैं।
      जम्हूरियत के सौदागर ने,
       जुमले से आश जगा दी हैं।

         हर पार्टी के नेता ने,
       जनता की बलि चढ़ा दी हैं।
       एक ने जब भी सर काटा,
       दूजे ने सांस पिला दी हैं।
        वोट पाने की हशरत में,
       जनतंत्र की अर्थी उठा दी हैं।
       जम्हूरियत के सौदागर ने,
        जुमले से आश जगा दी हैं।
        हमने पतझड़ के पेड़ों से,
        छाया की आश लगा ली हैं।

                          अनिल कुमार मंडल
                     लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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