Best hindi poem- न्यू ईयर

                     न्यू ईयर

अंग्रेज यहाँ से चले गए, मानसिक गुलामी बाँकी हैं।
न्यू ईयर जो मना रहे, ये भी उसकी एक झांकी हैं।
भारतीय संस्कृति नग्न हुई ऐसे त्योहार मनाने में।
माँस, शराब का भोग लगाना क्या रखा इस खाने में।
इस देश में अच्छे कार्य यहाँ हिन्दू पंचांग से होती हैं।
मुहर्त बिन जो वियाह रचाये ज़िन्दगी भर वो रोती हैं।

चैत्र मास के इसी दिवस अपना नव बर्ष आरम्भ हुआ।
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, सृष्टी का जब प्रारंभ हुआ।
मधुमास क्या आया खेतों में हरियाली की रौनक छाती हैं,
वातावरण में उष्णता बढ़ती पेड़ पौधें मुस्काती हैं।
आम की मन को लुभाती खुशबू अंदर तक छा जाती हैं।
वसंतदुत भी ऐसे में जब कु-कु कर शोर के मचाती हैं।
प्रकृति अपना नव बर्ष यहाँ कुछ इसी तरह मनाती हैं।

भारत की वैदिक सभ्यता को हम तार-तार कर बैठे हैं।
पुरखों के सब सपनें को हम दाग-दार कर बैठे हैं।
ऋषि मुनियों का देश हैं ये मानसिक बेडियाँ तोडों तुम।
अंग्रेज यहाँ से चले गए, न्यू ईयर मनाना छोड़ो तुम।

                                     अनिल कुमार मंडल
                                लोको पायलट/गाजियाबाद


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