Best hindi poem- रेल
रेल
हम भारतीय रेल की रीढ़ की हड्डी,
बरसों खेलें साथ कबड्डी।
संचालन बाधित हुई तो,
दोनों की गीली हुई थी चड्डी।
पर तेरे ज्ञान के बिना मैं होता,
लोको पायलट आज फिसड्डी।
इंजन पे चढ़ना सिखलाया,
और बताया खाना क्या।
अनुभव की वो बात बताई,
किताबों में जाना क्या।
सिग्नल की बारीकी बताई
गोलाई का आना हैं।
रास्ते का ढलान बताया,
कैसे लौङ चढ़ाना हैं।
कहॉ पे कितना नाँच लगेगा,
कहॉ पे ब्रेक लगाना हैं।
स्टेशन के बिल्कुल करीब,
पानी कहाँ से लाना हैं।
ड्युटी ऑवर ज्यादा हो जाए,
नखरे कैसे दिखाना हैं।
सुरक्षित रेल चलाना भाई,
किलोमीटर पे नहीं जाना हैं।
अधिकारी इंजन पे आये,
तुम्हें नहीं घबराना हैं।
अब मेरे सहचर भाई जा रहे,
मुझकों कर बेगाना सा।
रेल प्रांगण में आया जब,
सब कुछ था अंजाना सा।
रेल की बगिया को महकाकर,
हमसे रिश्ता तोड़ रहे।
ज्ञान हमें वो ऐसी दे गए,
गीता भी झकझोर गए।
शुभकामनाएं मेरी उनको,
जो रेल की बगिया छोड़ रहे।
हमसे रिश्ता तोड़ रहे,
लहू से रिश्ता वो जोड़ रहे।
खुश रहे आबाद रहे अब,
अपनों से शर्माना किया।
बेशक अपना सुख-दुःख कहना
अपनों को भरमाना क्या।
दिल का रिश्ता बना रहें अब
तनहा अश्रु बहाना क्या।
प्रेमपाश में बंधे रहे हम,
चाय मिठाई खाना क्या।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/गाजियाबाद
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