Best hindi poem-कमेटी भल्ला
कमेटी भल्ला
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दिन रात पटरी पे घूम-घूम,
हर जगह का पानी चुम-चुम
सह धूप-स्वेद पत्थर पानी,
हो गए हैं,हम कुछ अभिमानी।
मौसम की थपेड़ों को सहकर,
हम आये हें,कुछ और निखर।
जब हिना सहती पत्थर प्रहार,
बनती हैं हाथों का श्रृंगार।
चालक न सब दिन सोता हैं,
हक के लिए क्रोधित होता हैं।
दो न्याय कमेटी भल्ला दो,
इसमें भी कोई दल्ला हो,
इतना तो दो न हल्ला हो।
हम वही सुखी से खाएंगे,
सुरक्षित रेल चलाएगें।
रेलवे हमको ये दे ना रही,
आशीष हमारी ले ना रही।
तो लो मैंने भी छोड़ दिया ,
अपने हठ से मुख मोड़ लिया।
अब याचना नहीं निर्णय होगा,
अपने हक में ये तय होगा।
जब रेल खड़ी हो जायेगी
हर बाधा दुर भगाएगी।
यात्री करेंगे ,चीख-पुकार,
रेलवे हो जिसका जिम्मेदार।
Rac 80 का किलोमीटर होगा,
इसमें न कोई चीटर होगा।
जो देगा होगा भाई ज्येष्ठ,
हम माने उसको परम श्रेष्ठ।
हुम् गीत खुशी के गाएंगे,
तन मन से रेल चलाएंगे।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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