Best hindi poem :-प्रकृति
प्रकृति
प्रकृति से अब मत खेलों तुम,
सुख चाहे जितना ले लो तुम।
वरना एक दिन पछ्ताओगे,
फिर अश्रु कहाँ बहाओगे।
निर्जल अगर ये धरा हो गई ,
फिर बचेगा यहाँ नहीं कोई।
नीचे जलस्तर चला गया,
सिन्धु की तट को बढ़ा गया।
हैं ध्रुव पे बर्फ पिघलने को,
सभ्यता हैं तैयार खड़ा,
उस बर्फ की आग में जलने को।
कानन का हमनें नाश किया,
फैक्टरियों का शिलान्यास किया।
जंगल से पाते शुद्ध हवा,
कन्द-मूल के संग पाते थे दवा।
फैक्टरियां घोलती हैं हवा में जहर,
अब शुद्ध खाना भी हुआ दुर्भर।
जीवन हैं वैद्धो पर निर्भर।
प्रकृति ने हमसे कई बार कहाँ,
उत्तराखंड में भी संदेश गढ़ा,
फिर भी हमनें न सिख लिया।
अब बहुत हो चुका छोड़ो तुम,
प्रकृति से नाता जोड़ो तुम,
अब तो नीर बचा लो तुम,
हरियाली थोड़ी बढ़ा लो तुम,
बच्चों की उमर बढ़ा लो तुम।
पर एक बात का ध्यान रहे,
प्राकृति से अब मत खेलों तुम
सुख चाहे जितना ले लो तुम।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ ग़ाज़ियाबाद
Comments
Post a Comment