Best hindi poem:-सृष्टि रचना
सृष्टि रचना
आमावश की रात सुहानी,
तारिका बनी गगन की रानी।
रजनी में थी, विह्वल वाणी।
भाव की एक तूूफान थी आई,
तन विकृत कर ली अंगड़ाई।
वासनामय माहौल बना था।
मेरे सिर पे तना खड़ा था।
व्यथा सारी उस पल में खोया।
रात में गहरी नींद में सोया।
हीय का मैं तकिया बनबाकर,
सांसों को कुछ गति दिलाकर।
नैनों के उपवन में घुमा,
अधरों को अधरों से चूमा।
हाथों ने करतब दिखलाया,
मध्यमा को भी सैर कराया।
आपादमस्तक का मधुमय बेला।
अंग-अंग ने क्रीड़ा वो खेला।
नारी में बैकुण्ठ में पाया।
चारों धाम का दर्शन पाया।
बूंदों ने जब उपवन सींचा,
एक दूूजे को जोर से खिंचा।
कुछ पल की खामोशी छाई,
एक लम्बी सी साँस भर आई।
स्पंदन भी तेज हो आई,
काया ने स्थुलता पाई।
आदि मानव बने हुऐ थे,
बेसुध यू ही पड़े हुऐ थे।
चिडियाँ ने जब सुबह जगाया,
मन थोड़ा विचलित हो आया।
कितनी जल्दी दिनकर आया,
गहरी नींद से हमें जगाया।
ईश्वर की हैं दुनिया प्यारी,
इतने से सृष्टि रच डाली।
अनिल कुमार मंडल
लोको, पायलट/ग़ाज़ियाबाद
Nice....keep working
ReplyDelete...its getting better and better.