Poem of love:-मसला
मसला
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साला को नालायक कहने का,मसला ने ऑग लगाया था।
पूस की ठंढ़ी रातों में बीबी ने देर से खाया था।
तन्हाई में सोना तय हुआ,नोंक झोंक कर आया था।
त्रियमा तक जगा रहा, सर्दी ने सितम वो ढाया था।
करबट बदले चादर में सिकुड़े, पाँव नही गरमाया था।
जाने कैसा वक़्त फिरा, बीबी से जा टकराया था।
मति मेरी मारी गई,पानी में आग लगाया था।
भगवान राम की याद आई,माता ने मृग मंगाया था।
महाभारत में पांचाली ने,कौरव का नाश कराया था।
हम मानव की क्या बिसात, देवों ने शीश झुकाया था।
सर्दी ने मुझको हिला दिया,घर बैठे ध्रुव घुमाया था।
आँख खुली सिगड़ी ले बैठा,जिसने मुझे बचाया था।
तन्हाई में रात निकल गई, शिक्षा मैंने एक पाया था।
ससुराल पक्ष की चिंता हैं मुझे,ऐसा रंग जमाया था।
सुबह,दोपहर, तीन पहर,सासु से बात कराया था।
सप्ताहिक ये क्रम चला,बीबी को मैंने मनाया था।
कोर्ट,कचहरी बात न पहुंचे, घर में ये सुलझाया था।
घोड़ा बेचके सोते दोंनो, सर्दी ने चकमा खाया था।
साला को नालायक कहने का, मसला ने ऑग लगाया था।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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