Best hindi poem-मकड़जाल(कहानी)

                           मकड़जाल

मनुष्य जब से पैदा हुआ हैं ,वह किसी नई जानकारी को तीन तरीके से ग्रहण करता हैं।पहला हैं देखकर जिस समाज में हम रहते हैं, कोई घटना कैसे घटित हो रही हैं, समाज में कोई क्या कर रहा उसके परिणाम अच्छे या बुरे हो रहे हैं, उसको देखकर हम भी सीखें थे, हमारे बच्चे भी सीख रहे हैं।दुसरा तरीका हैं सुनकर हम अपने बच्चों को सुनाते हैं कहते हैं कोई कार्य ऐसे नहीं ऐसे करना हैं, जो हम अपने बच्चों को सुनाएंगे बताएंगे बच्चे वैसा करेंगें।तीसरा हैं खुद करके सीखना अगर आप ने एक बच्चे से कहा बेटा आग हैं वहाँ मत जाओ जल जाओगे लेकिन बच्चा बार-बार वही जा रहा हैं, अगर उस बच्चे ने उस आग की तपिश और जलन की एहसास को एक बार अगर झेल लिया, तो उसे भविष्य में कभी ये बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी की उसे आग से दुर रहना हैं।
                             आज मैं पहले तरीके की बात करूंगा,हम सब लोगों ने बापू जी, महात्मा गाँधी के बारे में एक कहानी पढ़ी हैं कि जब वो छोटे थे, तो उन्होंने एक नाटक देखा था 'राजा हरिश्चन्द्र' उसको देखने के बाद उनकी जीवनशैली बदल गई वो हमेशा के लिये सच बोलने लगे।
                              आज हमारे बच्चे पाँच बर्ष की उम्र में टेलीविजन देखना प्रारम्भ करते हैं, और पच्चीस की उम्र आते-आते लगभग हजारों बार वह टेलीविजन पे चोरी, डकैती, लूट, बालात्कार और हत्या जैसे संगीन जुर्म देख चुका होता हैं।आप उसकी मनोस्थिति की कल्पना कीजये वह टेलीविजन पे दिखाये गए किसी भी घटना से प्रभावित होकर वैसा ही करने की कोशिश कर सकता हैं।
                          एक बार की बात हैं मैं अपने बच्चे का सामान्य ज्ञान का किताब देख रहा था, मैं ये देखकर स्तब्ध रह गया कि उनको तीन अभिनेता के नाम याद कराये जा रहे हैं, तीन अभिनेत्रियों के नाम याद कराये जा रहे हैं।हमारे समय में सन 1990 तथा उसके पहले देशभक्तो के नाम याद करने थे,लेखक के नाम याद करने थे, वीरांगनाओं के नाम याद करने थे कहने का तात्पर्य हैं हमें उनके बारे में पढ़ाया जाता था जिनको हम अपना आदर्श मान सकते हैं।
                                         पर आज के हालात विचारणीय हैं।ये फ़िल्म में काम करने वाले, नाच गा कर पैसा कमाने वाले,खेलने वाले हमारे और आप के बच्चों के आदर्श बने हुऐ हैं।ऐसे में हम कैसे किसी राष्ट्रभक्त, देशभक्त और वीर पुरुष की कल्पना कर सकते हैं।टेलीविजन में जो दिखाया जाता हैं हमारे बच्चे उसी को सच मान कर उसके जैसा बनने या करने की कोशिश करते हैं।ये अभिनेत्री, ये अभिनेता, खिलाड़ी सब पैसा कमाने में लगें हैं क्या उनका इस देश के प्रति कोई जिम्मेदारी नही होती।एक बात मैं एक खिलाड़ी से पूछना चाहता हूं कि वो टेलीविजन पे एक जाहिरात आता हैं,और कहता हैं बूस्ट इज द सिक्रेट ऑफ माई एनर्जी क्या उस खिलाड़ी की माता जी मुझे समझा सकती हैं ,आज जो उनका लड़का इतना बड़ा खिलाड़ी बन गया है वो बूस्ट खाकर बना हैं भाई कतई नहीं फिर टेलीविज़न पे वो हमारे बच्चों को क्यो बताता हैं, बूस्ट इज द सीक्रेट ऑफ माई एनर्जी ये तो सारा सारी झूठी जाहिरात हैं।और ये जाहिरात वो करते हैं जिनको आज हमारे बच्चे आदर्श माने बैठे हैं।उनके साथ धोखा हो रहा हैं, इस धोखे में आकर हमारे बच्चे राह भटक रहे हैं।
                          ऐसे में हम एक स्वस्थ समाज की कल्पना कैसे कर सकते हैं, आज की युवा पीढ़ी को इस पर विचार कर लेना चाहिए ,अपने लिये नही तो कम से कम अपने आने वाली पीढ़ी का ख्याल करते हुए हमें अपने बच्चों को बचाना होगा।आज ये देश बुरी तरह से टेलीविजन के मकड़जाल में उलझ गया हैं, हमें इसके उपाय जल्दी ही ढूँढने पड़ेंगे, नही तो भारतीय संस्कृति को इतिहास के पन्नों में दर्ज होना पड़ेगा,
                  अंत मे मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ, कि भारत के हर बच्चे में इस देश का भविष्य बसता है, और अपने वर्तमान के साथ-साथ हमें अपने भविष्य का भी उचित मार्गदर्शन करना चाहिए।

                          लेखक:-अनिल कुमार मंडल
                           लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

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