Best hindi poem-मुसाफिर
मुसाफिर
***********
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर, मोती कैसे पायेगा।
श्रृंखलाबद्ध सिंधु की तरेंगे, हर घड़ी तुझे डरायेगा।
हौसलों की उड़ान भरो, पानी मे लीक बनाना हैं ,
जब-जब तुमने जिद ठानी, बेपंख क्षितिज पर छाना हैं।
वीचि में नया उमंग लिए जा, भूधर भी शर्माएगी,
ईश्वर की सारी रचनाएँ, तुझको राह दिखायेगी।
मेहंदी भी कुछ रंग दिखाये, पहले रगड़ी जाती है।
तभी तो मेहंदी पीस कर के फिर, अपने रंग में आती हैं।
काल का पहिया यू ही चलेगा, कब तुम इसको जानोगे,
ईश्वर की तुम अदभुत रचना, इसको कब पहचानोगे।
पीड़ सहे जो बाधा में, बाधा भी राह दिखाता हैं,
मेहनत से भागा हुआ नर, फिर हाथ मले पछताता है।
खाली हाथ यहाँ पे आया, क्या लेकर यहाँ से जाएगा।
अंतक के आने से पहले, सौ बार यहाँ मर जायेगा।
जलधि कूल मेंं बैैठ मुसाफिर ,सोच यहाँ क्या पायेगा।
अपना खून ही आग लगाकर, वापिस घर को आएगा।
कुछ दिन तुमको याद करें, फिर यादों को दफ़नायेगा,
तेरे अपना कर्म यहाँ पर बस अपना रह जायेगा।
इतिहास वहीं लिख पाएगा, जो विघ्नों से टकराएगा,
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर, आत्मग्लानि भर जाएगा।
उम्मीद पे दुनिया क़ायम हैं, जो टुट के भी टकरायेगा।
वक़्त को अपने मुट्ठी में कर, बाज़ीगर कहलायेगा।
तेरा अपना साथी ही, इतिहास अमर कर जाएगा,
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर, हाथ मले पछतायेगा।
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर,मोती कैसे पायेगा,
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर,मोती कैसे पायेगा।
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर, हाथ मले पछतायेगा।
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर,मोती कैसे पायेगा,
जलधि कूल में बैठ मुसाफिर,मोती कैसे पायेगा।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
Very good kavita
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteधन्यवाद जनाब
ReplyDeleteInspiring hai
ReplyDelete