Best hindi poem:- दूरदर्शन का दिया खाज
दूरदर्शन का दिया खाज
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जो भारतीय समाज हैं,वेंदो में लिखा राज हैं ।
जो भारतीय समाज हैं, इश्वर की एक आवाज हैं।
जो आज का समाज हैं, बर्बादी का आगाज हैं।
जो आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
उषाकाल जगना, सवेरे ही सो जाना, निरोगियो का राज हैं,
मध्यरात्रि में सोना, दोपहर तक हैं सोना, रोगों ने दी आवाज हैं।
वे अस्त्र,शस्त्र मार दे, ये वो हसीन ताज हैं।
जो आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
घुटने को आधे मोड़कर, फ्रेश होने का रिवाज़ हैं
भारतीय कमोड गायब हैं, वेस्टर्न का घर पे राज हैं।
दातुन,मंजन गायब हैं, केमिकल से बने पेस्ट का,
हर घर मे ही साम्रज्य है।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
शुद्व तेल घर से गायब हैं, रिफाइन के सर पे ताज हैं,
केमिकल से घिरे चेहरे, फैशन का ये हिसाब हैं,
तन की सुन्दरता हर तरफ, एक खौफनाक राज हैं,
मन की सुन्दरता गायब हैं,रसायन रगड़कर चेहरे पे,
बन रहा सरताज हैं।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज है।
सारे विद्यालय झूठे, बस प्राप्तांक का रिवाज हैं,
कोई नहीं बताता, मानव तन पाने का, उद्देश्य क्या आज हैं,
शिक्षा का मूल्यांकन कर के,धन का बने खजाना,
शिक्षा से धन कमाना, उद्देश्य ही अब राज हैं,
ये आज का समाज हैं, ये आज का समाज हैं।
दाल-चावल, रोटी-सब्जी मसाले तक हैं मिलावटी,
रासायनिक अन्न खाके, डॉक्टर पड़े बीमार हैं,
गरीबी में जीता हलधर, व्यपारी भी मोहताज हैं,
बाजार,हाट घुमे पर,शुद्ध न अनाज हैं।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
आयोडीन नमक में राज हैं, आरoओo का भी रिवाज हैं,
बीमार हमको करने में, लगा हुआ साम्राज्य है,
आयोडीन नमक की जरुरत नहीं, R O से मिनरल गायब हैं।
फ़ास्ट फ़ूड का हैं जमाना,मम्मी का पड़ा काज हैं।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
ताजा रोटी छोड़कर, सड़ा सा मैदा खाना,
अजीनोमोटो डालकर, स्वाद ग्रंथि को मिटाना,
वो दाल-रोटी छोड़कर, पिज़्ज़ा, बर्गर मंगवाना,
युवाओं की आवाज हैं।
युवाओं की आवाज हैं।
पश्चिम की थी मजबूरी,अपना बना रिवाज हैं
ये आज का समाज हैं, ये आज का समाज है।
केमिकल से बने चॉकलेट, हर रोज यहाँ बिकती,
जिसकी मानकता विदेश में, किसी अस्तर पर न टिकती।
भारत मे ऐसी कंपनी का,हर दिन होता आगाज हैं।
अनाज और दुध खाके, ताकत अपनी बढ़ाते,
अनाज और दुध खाके, ताकत अपनी बढ़ाते,
दुध की शक्ति बढ़ाने का, चल गया नया रिवाज हैं।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
कोल्ड्रिंक एक अम्ल हैं, रक्त में ये भरता कचरा ,
हड्डी हैं इसका खाना, कार्बन से ये बना हैं,
न ठीक इसकी शिरत,
न ठीक इसकी शिरत,
जहर पीने पिलाने का,चला गज़ब रिवाज हैं।
ये आज का समाज हैं ,ये आज का समाज हैं।
जिसने रसोई में कभी कदम भी नहीं रखी,वो नारी
हमें सिखाती, किस आटे की रोटी "लाजवाब "हैं।
हमें सिखाती, किस आटे की रोटी "लाजवाब "हैं।
जिसके घर गंजे घुमे, वो हमको हैं समझाती,
किस तेल में छुपे, उसके बालों का राज हैं।
किस तेल में छुपे, उसके बालों का राज हैं।
क्या ग़ज़ब समाज हैं, ये आज का समाज हैं
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
दो क्विंटल का आदमी,योग के फायदे बताता हैं,
सात जन्म का रिश्ता तोड़,बेटी बचाओ चिल्लाता हैं।
साध्वी बच्चे पैदा करने की सलाह दे रही ,
हर नेता गंगा माँ की झूठी कसमें खा रही।
कैसी हुई हैं संस्कृति, कैसा बना समाज हैं।
ये आज का समाज हैं, दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
हर एक दिशाओं में यहाँ, बईमानी का रिवाज हैं,
झूठे के सर पे ताज हैं, दुपट्टा सर से गायब हैं।
ये जीन्स का रिवाज हैं, सच्चाई यहाँ मौहताज हैं,
टीoवीo पे आते जाहिरात, लगते सारे नाजायज हैं।
माँ-बाप घर पे भुखे हैं, डार्लिंग ने दी आवाज हैं।
पश्चिम की हैं बीमारी, ये बीमारी लाइलाज है।
पश्चिम की हैं बीमारी, ये बीमारी लाइलाज है।
ये आज का समाज हैं ,दूरदर्शन का दिया खाज हैं।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
श्रीमान जी, आज आपके जैसे लोगों की देश को जरूरत है . देश को आपके मार्गदर्शन की जरूरत है मेरा आप को सत सत नमन नमन आपने जो कविता लिखी है वह बहुत ही मार्मिक हैं.
ReplyDeleteजी आप मेरा हौशला अफजाई करते रहेंगे तो शायद और बेहतर लिख पाऊंगा।
DeleteSahi kah rehe hai sahab
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