Best hindi poem-भारतीय रेल हैं मधुशाला
भारतीय रेल हैं मधुशाला
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रेल वाले सब बने है साकी,
भारतीय रेल है मधुशाला।
सुरमा यहाँ कई आये पर,
पीकर सारे मौन हुए।
याद उसे हम अब भी करते,
जिसने तोड़ी थी प्याला।
आते-जाते रहेंगे साकी,
सजि रहेगी मधुशाला।
रेल में आने के पहले दिन,
नाज दिखाए मतवाला।
मदिरालय में बैठ के कुछ दिन,
नाज दिखाएगा काला।
जिस दिन पहली तन्खवॉ पाता,
गाये सच्ची मधुशाला।
भारतीय रेल को हम पीते हैं,
मुझको पीती मधुशाला।
बुरा-भला इसे वो कहते है,
जिसने न चखा हैं प्याला।
पर मेरी हर रोटी के निवाले,
आज बसा है मधुशाला।
दिन रात खुलता मदिरालय
मौसम की निर्दयता पर।
चाहे कितनी आग लगी हो
चाहे पड़े कही पाला।
सालों भर और चारों पहर
इस देश मे चलती मधुशाला।
बनी रहे यह रेल की पटरी,
डब्बों की बनी रहे माला।
चलता रहे यह रेल का चक्का
जो देता मधु का प्याला।
मंदिर-मस्जिद खूब लड़ाती,
पड़ जाए इसपे ताला।
हर निर्धन की प्यास बुझाये,
एक अकेली मधुशाला।
लाल पीले जो नोट है साकी
इसमें बसता है ज्वाला।
इसकी कीमत वहीं समझता,
जिसके जठर पड़े छाला।
नोटों की तपीश जिसे हो
उसका मन कुण्ठित काला।
ऐसे साकी रोते फिरते
मान न करती मधुशाला।
साठ बरस की सेवा देकर,
जब चलता साकीवाला।
असमंजस से भरी जिंदगी,
जीता वो भोला-भाला।
तरह-तरह के मशवरें मिलते,
पर मैं ये बतलाता हूँ,
बच्चों को अब प्याला दे-दो
मोह न कर अब मधुशाला।
इसकी कीमत वो क्या जाने,
जिसके पाँव सितारों पर।
मध्यमवर्ग का एक हैं साथी,
जो देता इनको प्याला।
गुरबत में जब घर जलता है
आग बुझाये मधुशाला।
जो भी पथिक आया मदिरालय,
बनकर के पीनेवाला।
नतमस्तक हो मधुशाले को,
जिसने भी सम्मान दिया।
उस साकी के जीवन रथ में,
अमृत घोले मधुशाला।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद