Best hindi poem-रनिंग
रनिंग
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लोहा अगर लोहा को काटे, ये नई कोई बात नहीं,
रनिंग का साथी रनिंग को काटे, उसकी ये औकात नही।
अपने दिन वो भुल जाते हैं, दफ्तर में लग जाने पर,
किलोमीटर, घंटे काटे लाख इसे समझाने पर।
रेल के बनते पक्के सेवक,लेकिन रेल पे भारी हैं,
इनके करनी की सजा बच्चों पे ही पड़ नी है।
इनको हमेशा भ्रम हैं रहता, इसके बिना न चलती रेल,
आना जाना लगा ही रहता,ये तो हैं जीवन का खेल।
कुछ लोगों के जाने से रुक जाना रेल का काम नहीं,
जितना जो मेहनत करता, क्या पाता उतना दाम नहीं।
रनिंग के हक के पैसे पे नजर कड़ी करने वाले,
इतिहास तुम्हारे सामने हैं, नियत ऐसी धरने वाले।
मेहनत का पैसा ये हमारा, गैरों के काम न आयेगा,
जो रनिंग से धोखा करता, कही चैन नहीं पायेगा।
यहाँ तो वे सफाई देते, क्या लेकर ऊपर जाएगा,
सेवानिवृति के बाद अगर लॉबी पे घुमने आयेगा।
नए लोगों की बातें सुनकर, अनसुना कर जायेगा।
रेल के ऐसे कामचोरों को,कोई न चाय पिलायेगा।
कुछ गाली कुछ तीखे तेवर, देख उसे अपनायेगा।
अपनी करनी याद करेगा बेशर्मी दिखलायेगा,
जिल्लत की ज़िंदगी जियेगा, जी कर भी मर जायेगा।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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