Best hindi poem:- सचल दूरभाष

                     सचल दूरभाष

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हे!सचल दूरभाष दूरदर्शी यंत्र, हैं खूब नशीले तेरे तंत्र।
तुम छोड़ दो मेरा दामन तो मैं बचपन थोड़ा जी लेता,
माँ, बापू मेरे साथ होते, दादी से कहानी पी लेता
तितलियों के पीछे भागता में, थक के झुले को चूमता में,
पर तुमसे एक ही विनती हैं, न छेड़ो मेरे मन के तंत्र।
हे! सचल दूरभाष दूरदर्शी यंत्र, हैं खूब नशीले तेरे तंत्र

तुमने हमको कंगाल किया, निर्धन कर ये जंजाल दिया 
तुमने मेरी लट्टु ले ली, वो बारिश की कश्ती ले ली
चाचा के हाथ से टॉर्च गई, बापु की तुमने घड़ी ले ली
अब गांव का वो चौपाल गया, अक्काशी का वो कमाल गया
वो रेडियो का संगीत गया, प्रोग्राम वो छाया गीत गया।
उस घर मे अब दीवार पड़ी जिस घर पे चल गया तेरा मंत्र।
हे!सचल दूरभाष दूरदर्शी यंत्र, हैं खूब नशीले तेरे तंत्र।

व्हाट्सएप, फेसबुक तेरे श्रृंगार, इससे करती तुम मन पे वार
तुम करती मुझपे अत्याचार, खोये हैं हमनें सुविचार,
व्हाट्सएप पर ऊँगली करवाती, मैसेज फोरवर्ड भी करवाती,
भाई-भाई में लड़वाती, हिंदू मुश्लिम भी करवाती।
तेरा करिश्मा हम जानते हैं, तुम बदल सकती हो लोकतंत्र।
हे सचल दूरभाष,दूरदर्शी यंत्र हैं खूब नशीले तेरे तंत्र।

                                     अनिल कुमार मंडल
                               लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
                                संपर्क सूत्र:-9205028055
                                                                  
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