Best hindi poem:-g फॉर जेंटलमैन
G फॉर जेंटलमैन
आज हम भारतवासी आधुनिकता, जाहिरात, सोशल मीडिया, टेलिविजन में इस कदर खोये हैं, की हमें सही-गलत,अच्छे-बुरे की पहचान करना भुल गए हैं।खुद की सोचने, विचारने की शक्ति खो बैठे हैं।मीडिया और टेलीविजन जो हमें दिखाता हैं हम उसे ही सच मान लेते है,उसपर विचार नहीं करते और यही पश्चिमी देशों की चाल हैं यही उनकी साजिश हैं,जिसके हम शिकार हो रहे हैं और अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे है,जिसके कारण आज हमारे समाज मे लुट, चोरी, डकैती, मर्डर और बलात्कार जैसे संगिन घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिसमें पश्चिमी शिक्षा प्रणाली जलती दीपक में घी का काम कर रहा हैं।आज मैं आप को पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के कुछ काले कारनामे से अवगत कराना चाहता हूँ।
याद किजीए आज से 30-35 बर्ष पूर्व मतलब 80 से 90 के बीच जब A, B, C,, D ..........
जब हम पढ़ते थे तो B फॉर बॉल या B फॉर बैट पढ़ते थे और बच्चों को ये आसानी से याद भी हो जाता हैं फिर B फॉर ब्रेड पढ़ाने की क्या जरूरत पड़ गई जबकि ब्रेड इस देश का खाना भी नहीं हैं,ये पश्चिम का खाना हैं और चुकी पश्चिमी सभ्यता को बढ़ावा देना हैं इसी लिये B फ़ॉर ब्रेड पढ़ाकर बचपन से हमारे बच्चों को पश्चिमी संस्कृति में झोंका जा रहा हैं और ब्रेड की विदेशी कंपनियों का व्यापार चल रहा हैं।वहीं हाल C फॉर कैट का हैं जो अब C फॉर केक हो गया हैं। D फ़ॉर डॉग ने तो हमारी गौमाता को घर से बाहर तक का सफर तय करा दिया और घास,भूसा को छोड़ कचरा खाने पे मजबूर कर दिया है। क्यो की जब पहले D फॉर डॉग पढ़ाया जाता था तो उसके ठीक सामने जो फ़ोटो लगाई जाती थी वह एक स्वदेशी नस्ल के कुत्ते की फोटो लगाई जाती थी जिसके स्थान पर अब ब्रिटिश बुल डॉग की फ़ोटो लगाई गई हैंऔर गले मे चैन बंधी होती है जिसको दिखा कर बच्चें के मनमस्तिष्क में ये बैठाने की कोशिश की जा रही हैं की यह एक घरेलू जानवर है,एक पालतु जानवर हैं और इस प्रकार भारतीय गौ का तिरस्कार को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।E फॉर एलिफैंट हम लोगों ने 80 से 90 के दशक में पढ़े थे पर अब E फ़ॉर एग पढ़ाया जाता है भारतीय समाज में हाथी शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता था।पुराने समय में राजा,महाराजा इसकी सवारी किया करते थे इसीलिए E फ़ॉर एलिफैंट पढ़ाना उचित था किंतु E फ़ॉर एग्ग ने एक नए समाज का निर्धारण कर रखा है जो ये मानते हैं कि मांस मछली तो मांसाहारी खाना है किंतु अंडा एक शाकाहारी भोजन है।
इस तरीके से हमारे बच्चों के किताबों में पश्चिमी सभ्यता का आगमन हो रहा है कहीं आंशिक तो कहीं पूर्णतः लेकिन परिवर्तन जारी है। जिसके परिणाम घातक हो सकते है।
अब F फ़ॉर फैन ही ले लीजिये जब पहले F फ़ॉर फैन पढ़ाया जाता था तो उसके ठीक सामने हाथ से चलाने वाला पंखे का चित्र हुआ करता था किंतु अब या तो टेबल फैन और या तो सेल्लिंग फैन होता है कुछ पुस्तकों में तो पंखे बनाने वाली कंपनियों के नाम तक लिखे होते है ऐसा लगता है मानो बच्चों को A,B,C,D के बजाये बच्चों के किताब के माध्यम से पंखे का जाहिरात दिखाना चाहते हैं जिससे कि बच्चे अपने माँ-बाप से वही पंखे खरीदने की ज़िद्द करें जैसा की उसने पुस्तक में देख रखा था।
G फ़ॉर गोट पढ़ते-पढ़ते जब से हम भारतवासी G फ़ॉर जेंटलमैन पे कब पहुंच गए हम भारतीयों को इसके दुष्प्रभाव का अंदाजा नहीं है। हमने जबसे G फ़ॉर जेंटलमैन पढ़ना शुरू किया और एक ऐसी फ़ोटो लगा कर हमें जेंटलमैन पढ़ाई गई जो कोट,पैंट, हैट और छतरी लगाये एक अंग्रेज की फ़ोटो हुआ करती हैं,चाहे उसका चरित्र कितना ही गंदा क्यों ना हो।जेंटलमेन मतलब एक ऐसा इंसान जिसने कोट पैंट और टाई पहन रखी हो इस अंग्रेजी कल्चर को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेजों ने अपने सभा संबोधन के लिए जो शब्द चुनें वो भी यहीं से लेडीज एंड जेंटलमैन चाहे उस इंसान का चरित्र कितना ही नीचता भरा क्यो न हो कहलायेगा जेंटलमैन ही।अब जो बात मैं कहना चाहता हूँ वो ये हैं कि G फॉर जेंटलमैन हमनें भी पढ़ी औऱ G फॉर जेंटलमैन उस लड़की ने भी पढ़ी जिससे हमारी शादी हुई अब दोंनो के मन में जेंटलमैन की एक ही परिभाषा हैं, कोट,पैंट और टाई वाली फिर एक बाप जो मेहनत,मजदुरी, और जमीन बेचकर अपने बच्चों को अच्छे पद पे पहुँचाया और जब वो बुढ़ा हो गया तो G फॉर जेंटलमैन की पढ़ाई करते-करते उसका लड़का उस बुढ़े बाप को भूल जाता हैं क्यो की उसका पिता ना कभी कोट, पहना हैं ना टाई लगाया हैं अंग्रेजी शिक्षा पद्धति में वो किसी प्रकार का जेंटलमैन हैं ही नहीं अब वो लड़का कितना ही बड़ा अधिकारी क्यो न हो जाये एक धोती कुर्ता वाले बुजुर्ग को अपने अधिकारी समाज मे बैठाना अपने प्रतिष्ठा की हानि समझने लगता हैं, उसका मात्र एक कारण है कि उसका पिता जेंटलमैन नही है,अतःबुढ़ापे में जो सम्मान उस बुजुर्ग को मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता हैं, और उस घर की बहु भी बुजुर्ग को वो सम्मान नहीं देती या उस बुजुर्ग को सम्मान देने में अपनी प्रतिष्ठा की हानि समझने लगती है।
मैं ये नहीं कहता की हर बुजुर्ग को ऐसा ही तिरस्कार का सामना करना पड़ता हैं, लेकिन ये भी एक सच्चाई हैं कि जिस शहर में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के माध्यम पढें लिखें युवा अधिक हैं,उसी शहर में वृद्धाश्रम की संख्या अधिक हो रही हैं जिसके परिणाम स्वरूप चोरी, और बलात्कार जैसी घटनाएं भी बढ़ी है।
ये जो परिवारों के बीच दूरियां बढ़ी है ये पश्चिम ने हमें ऐसा दरार दिया हैं जो अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से बिल्कुल नहीं भरी जा सकती अगर इस का कहीं समाधान हैं तो वो हैं गुरुकुल शिक्षा या फिर घर की माताएं जो अपने बच्चों का चरित्र निर्माण कर सकती हैं और आज की सामाजिक कुरीतियों से लड़ने का साहस अपने बच्चों में भर सकती हैं,सामाजिक मर्यादा सीखा सकती हैं, टेलीविजन की अश्लीलता, और झूठे जाहिरात से दुर रख सकती तभी हमारी संस्कृति बच सकती हैं और तभी इस देश में वीर पुरुष, और वीरांगनाओं का जन्म हो सकेगा।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ ग़ाज़ियाबाद
संपर्क सूत्र:-9205028055
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