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Showing posts from November, 2019

Poem of love:-अनमोल सफर

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            अनमोल सफर                   *-*-*-*-*-*-*-*-* बेशक दुनिया बैरी हो गई, तेरा मुझको हाथ चाहिए। जीवन के अनमोल सफर में, प्रियतम तेरा साथ चाहिए। आँचल में दुबकाकर जिसको,ममता का दो घुट दिया। कुछ तो कमी रही होगी जो, निश्छल उर को कूट दिया। गीला बिस्तर खुद सो कर, सुखे पे जिसे सुलाया था। पालने में झुनझुना टांग,लोरी गाकर बहलाया था। होशली तक गिरबी रख डाली, शिक्षा जिसे दिलाने में। जो भी कहता पूूरी करती, कमी न रखी खाने में। प्रेम डगर में बहुत हैं खोया, तुझसे हर जज्बात चाहिए। जीवन के अनमोल सफर में, प्रियतम तेरा साथ चाहिए। घंटों धुप में बदन जलाकर, हमनें जिसको सींचा था। चुनरी से बयार चली,फिर ममता से मुख भीचा था। दाँत का रस घोटा था तुमनें, तब बच्चें जवान हुऐ। जीवन की हर खुशियों बांटी, फिर कैसे नादान हुऐ। भुख भी अब तो डरा रहा, लाठी ने राह दिखाया हैं। जठराग्नि मंदी हो गई, तुझसे हर जज्बात चाहिए। बेशक दुनिया बैरी हो गई, तेरा मुझको हाथ चाहिए। ...

Best patriotic poem :- युवा जागरण

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                 युवा जागरण देश में अबकी पहली क्रांति,युवा जागरण होने दो। बजा रहे जो चैन की बंशी, उनकों हमें जगाने दो। चरखे से न आई आजादी,खू से सींचा ये बताने दो। गोरों ने हमकों सत्ता दी, हमनें न ली ये सिखाने दो। लंदन से कानून था आया, हिन्द,पाक हो जाने दो। तथाकथित आजादी दी थी ,पूर्ण स्वराज तो लाने दो। देश हैं अपना शिक्षा उनकी,पुलिस एक्ट सरकारें उनकी, कर बसूलते सब धारे उनकी,जंगल मे सरकारे उनकी। ये कैसी कानून व्यवस्था, महिलाओं का मान नही हैं, पीड़िता यहाँ की दर-दर भटके, न्याय में कोई जान नही। व्हीलर की दुकानें चल रही, लिट्टन नाम की सड़कें बन रही, डलहौजी ने नगर बसा ली, कैसी ये आजादी पा ली। अंग्रेजी को आदर्श बना ली, तथाकथित आजादी पा ली। दशकों तक गुमराह किया, सच्चा इतिहास बताने दो। जो तब थे सत्ता के लालची, सामने उनकों लाने दो तन था हिन्दी मन विलायती, काले अंग्रेज कहलाने दो। सत्ता के थे इतने लालची, निम्न स्तर तक जाने को। गोरों से सौदा कर डाला, बस ईस्ट इंडिया को जाने दो। बांकी सारी गोरों की कंपनी,भारत मे...

रार नया

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                      रार नया समर शेष हैं मैं कहता हूँ,रार नया कोई छेड़े हम। पश्चिम में हम व्यर्थ हैं उलझे,सारे रिश्ते तोड़े हम। उधर तो हैं दीपक चमक रहा हैं,अपनी खून की बाती से। अपने क्षितिज के गुुप्प अंधेरा,पश्चिमी तिमिर की छाती से। सत्ता बदली,शासक बदला अटका कहीं स्वराज हैं। ज्यों का त्यों ये देश पड़ा है मरघट सा साम्राज्य हैं। दिल्ली में नित्य हाला चढ़ता,पेट बांध हम सोते हैं। माँ को बसन नहीं मिलता, शिशु आँसू पी-पी रोते हैं समर शेष हैं कई विषमता हमकों मिली विरासत में। कुछ गोरों की करनी थी, कुछ अपनों की घबराहट में। किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े हम किन्तु कब तक मौन रहे। सारी बेड़िया तोड़ चुके हम जगत गुरु क्यों गौण रहे। इतिहास अमर इस मिट्टी का फिर विश्व गुरु हमें बनना हैं। समझौते के सारे बंधन तोड़ के फुनगी चढ़ना है। अंतरराष्ट्रीय सारे बंधन आज ही अभी मरोड़े हम। समर शेष हैं में कहता हूँ, रार नया कोई छेड़े हम।                             ...