रार नया

                      रार नया

समर शेष हैं मैं कहता हूँ,रार नया कोई छेड़े हम।
पश्चिम में हम व्यर्थ हैं उलझे,सारे रिश्ते तोड़े हम।

उधर तो हैं दीपक चमक रहा हैं,अपनी खून की बाती से।
अपने क्षितिज के गुुप्प अंधेरा,पश्चिमी तिमिर की छाती से।

सत्ता बदली,शासक बदला अटका कहीं स्वराज हैं।
ज्यों का त्यों ये देश पड़ा है मरघट सा साम्राज्य हैं।

दिल्ली में नित्य हाला चढ़ता,पेट बांध हम सोते हैं।
माँ को बसन नहीं मिलता, शिशु आँसू पी-पी रोते हैं

समर शेष हैं कई विषमता हमकों मिली विरासत में।
कुछ गोरों की करनी थी, कुछ अपनों की घबराहट में।

किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े हम किन्तु कब तक मौन रहे।
सारी बेड़िया तोड़ चुके हम जगत गुरु क्यों गौण रहे।

इतिहास अमर इस मिट्टी का फिर विश्व गुरु हमें बनना हैं।
समझौते के सारे बंधन तोड़ के फुनगी चढ़ना है।

अंतरराष्ट्रीय सारे बंधन आज ही अभी मरोड़े हम।
समर शेष हैं में कहता हूँ, रार नया कोई छेड़े हम।

                                       अनिल कुमार मंडल
                                 लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
                                  संपर्क सूत्र:-9205028055
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