Best hindi poem :-पहले वाली बात कहाँ

          पहले वाली बात कहाँ

              
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।
प्रेमपाश में गांव बंधा था, वैसी अब जज्बात कहाँ।
लट्टु का वो खेल खो गया, रेत पे नाम का मेल खो गया
कौड़ी की बिसात खो गई, गुड़ियों की बारात खो गई।
बच्चे भी अब डरे-डरे हैं, हम भी तो सहमे-सहमे हैं,
ना जाने कब कौन सी मोड़ पे, कर दे लोग आघात कहाँ,
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।
प्रेमपाश में गांव बंधा था, वैसी अब जज्बात कहाँ

गलियों में धूल उड़ा करती थी, पनघट पे परियां रहती थी,
विद्यालय से भाग के आना, मंदिर में जा के छुप जाना,
इमली, बैर चुरा के खाना, घंटों-घंटों पल में बिताना,
चलते फिरते मिलते हैं अब होती हैं मुलाकात कहाँ,
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।

सड़कों वाली धूल सिमट गई, फल वाली बागाने मिट गई,
बागों में झुला करते थे, श्यामा संग गाया करते थे।
कानफोड़ू संगीत नही था, नंगेपन का नृत्य नहीं था।
कोई इनको बंद करा दे, पर ऐसी शुरुआत कहाँ।
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।

नील गगन में राज था अपना,पछुआ में पतंग था अपना,
गलियों में बेड़ा भी अपना,ताल तलैया हो गया सपना।
कारखाने का शोर नहीं था, कैद में बुलबुल मोर नहीं था
इंसा में ईमान भरा था,बड़ो का तब सम्मान बड़ा था।
नदी साफ थी,नहर साफ था,अब वैसी बरसात कहाँ
प्रेमपाश में गाँव बंधा था, वैसी अब जज्बात कहाँ,
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।

ग़ैरत में बुजुर्ग जी रहे, बहू के हाथ से मार खा रहे,
बेटा भी खामोश खड़ा हैं, पोता सारा देख रहा हैं।
अधिकतर घर की यही कहानी, बहू बनी हैं घर की रानी।
हर रिश्तों में धन की गाँठ है,खोलने की हालात कहाँ
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।

बरसों पहले गाँव छोड़ दी, लेकिन अब भी याद कहानी,
एक लड़की थी खुब सयानी, वो थी हमपे खुब दीवानी,
साँझ पहर उसे छत पे देखा, सच था या आंखों का धोखा
मौन में रहकर बातें कर ली, बोलूं कुछ औकात कहाँ।
गाँव भी मेरा बदल गया हैं, पहले वाली बात कहाँ ।
प्रेमपाश में गांव बंधा था, वैसी अब जज्बात कहाँ।

                                  अनिल कुमार मंडल
                              लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
                             संपर्क सूत्र:-9205028055


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