दस्तूर

    दस्तूर


कोई यहां न अजर अमर है।
थोड़ा-थोड़ा दूर हैं।
आज मेरी कल तेरी वारी
ये कैसा दस्तूर हैं।
धन दौलत सब यहीं रहेगा,
होता क्यों मगरूर हैं।
चार कांधे का ले के सहारा
जाना जग से दूर हैं।
कोई यहाँ न अजर अमर हैं,
ये कैसा दस्तूर हैं।
आज मेरी कल तेरी बारी 
थोड़ा थोड़ा दूर हैं।
इससे कोई नहीं बचेगा,
यही सत्य ये नूर हैं।
बाकी ये जग मिथ्या सारा,
रिश्ते सभी फितूर हैं।
कोई यहाँ न अजर अमर हैं,
थोड़ा-थोड़ा दूर हैं।
आज मेरी कल तेरी बारी,
ये कैसा दस्तूर हैं।
जीवन जो दाता ने दिया हैं,
यही बहत्तर हूर हैं।
चार दिन की ये जिंदगानी,
हँस के जियो हजूर हैं।
कोई यहाँ न अजर अमर हैं,
ये कैसा दस्तूर हैं।
आज मेरी कल तेरी बारी ,
जाना वहाँ जरूर हैं।

            अनिल कुमार मंडल
       लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
              9205028055 

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