ताजा भात
बापु को रोजगार दिला दो,
हम भी खाएं ताजा भात ।
मांग के अपना गुजर बसर है,
हमको दे दो तुम सौगात ।
अक्सर हम भूखे सो जाते,
नींद नहीं आई थी रात ।
पानी पिया में जी भर के,
उठके हमने आधी रात।
अभी तो बासी से है गुजारा,
हमको दे दो तुम सौगात।
मैया भी भूखी थी सोई ,
बाबू रोया सारी रात ।
दुधमुंहा था बाबू अपना,
कहां से आता उसका भात ।
बापु को रोजगार दिला दो,
हम भी खाएं ताजा भात
बाबू के माता के हीय से,
दूध ना उतरी सारी रात ।
सुबह सवेरे सभी जगे पर,
बाबू की थी आखिरी रात ।
मैया रोए,बापु रोए कौन
सुने इनकी हालात।
सुनी खबर नेता भी आ गए,
हमसे पूछा कौन हो जात ,
नाक सिकुड के बोले नेता,
करता हूं अभी ऊपर बात ।
दे आश्वासन चल दिए नेता,
कर गए कुछ वोटों की बात।
अभी तो बासी से है गुजारा,
हमको दे दो तुम सौगात ।
कैसे बाबू तड़प-तड़प कर,
मौत से किया था दो-दो हाथ ।
अब ना अंतक आकर दे जाये,
किसी बाबू को सह और मात
भात नही दे सकते साहब,
फिर क्यों पूछ रहे हो जात।
अभी तो बासी से है गुजारा,
हमको दे दो तुम सौगात ।
बापु को रोजगार दिला दो,
हम भी खाएं ताजा भाव।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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