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Showing posts from September, 2020

समय का मोल

सूरज के केसरिया पथ पे, कभी न बाधा आता हैं। जो भी आता राह में इनके, तेज से ही ढक जाता है। राह में काले बादल आये, क्या सूरज भय खाता है। या जो बाधा राह में आये, उससे वो टकराता है। सूरज के केसरिया पथ पे, जो भूधर आ जाता हैं। उनके तेज के आगे भूधर, नतमस्तक हो जाता हैं। समय पे सूरज आता हैं , और समय पे सूरज जाता हैं हाँ मानव के हाथ से देखो, वक़्त ये फिसला जाता हैं। बाधा कोई राह में आये, उससे न टकराता हैं। वक़्त की वो प्रतीक्षा करता, जो आता और जाता हैं। जो सुरमा विघ्नों से लड़ता, वही अमर हो पाता हैं मानव समय का मोल न करता, फिर पीछे पछताता हैं। वक़्त के साथ में जो भी चलता, वही सफलता पाता हैं।२     अनिल कुमार मंडल  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

गुलाब की कलियों

 गुलाब की कलियों पे देखो, शबनम का नशा जब छाता हैं। प्रकृति की अद्भुत रचना से,  मानव हर्षित हो जाता हैं। लेकिन उसकी ये सुंदरता,  जब मानव मन को भाता हैं। बागों से ये तोड़े जाते हैं, मनु के घर पर आ जाता हैं। देवालय में इसे चढ़ाओ,  या फिर चढ़े मजारों पर, अपने से ये बिछड़ के देखो, नवजीवन नही लाता हैं। फूलों की सुंदरता ही देखो, उसका नाश करता हैं।     अनिल कुमार मंडल   रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद  फूलों पर शबनम थी गिरी,माली ने उनको धो दिए।  जाति धर्म की नीति ने,नफरत के बीज बो दिए।  भगत सिंह आए थे भारत,देखें अपने मुल्क का हाल।  विस्मय होकर देखा पहले, चीत्कार भरे और रो दिए।                     अनिल कुमार मंडल                  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद 

केसरिया पथ

दिनकर के केसरिया पथ पे कभी न बाधा आता है।  जो भी आता राह में उनके तेज से ही ढक जाता है।  दिनकर के केसरिया पथ पर कभी न बाधा आता है। क्या काले बादल आने से रवि कभी भय खाता है । या जो आता राह में उनके तेज से ही ढक जाता है। क्या कभी ग्रहण लगने से राह बदल हो आता है। जो भी आता पथ में उनके तेज से ही ढक जाता है।  उत्तम प्रवृत्ति के मानव का भी यही हाल हो जाता है। अपने तेज से भ्रमित मनुज को सत्य का बोध कराता है।  कितनी भी बाधाएं आये जरा नहीं घबराता है।  सुख-दुख दोनों एक भाव से जी कर वो दिखलाता है। तभी तो उनका तेज जगत में विश्वव्यापी कहलाता है।  ऐसे दिव्य मनुज की गाथा जग को राह दिखाता है।  दिनकर भी ऐसे वीरों के नमन में शीश झुकाता है।                     अनिल कुमार मंडल                    रेल चालक/गाजियाबाद

महबूब का चेहरा

सुबह शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है। उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है। घड़ी की सुइया धीमी लगती वक्त नहीं कट पाता है।  वो तो सीमा पर बैठे हैं,शाम को फोन ही आता है।  उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।  सुबह-सुबह जल्दी में रहते,ऐसा वो बतलाता है। उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।  जब भी छुट्टी में आता है,हमको खूब रिझाता है। उन्हीं लम्हों को याद करूं मैं,हमको वही रुलाता है। सुबह-शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है। उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है। हम तो विरह में जीते लेकिन,हिज्र का दर्द सताता है। सुबह शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है। उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।  अनिल कुमार मंडल  रेल चालक/गाजियाबाद 

दस्ता कहते-कहते

 बड़े शौक से सुन रहा था जमाना।  तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते।  पतवार भी दी,मंजिल भी बताया, भंवर में फंसे हम कहां बहते बहते। जो महफ़िल में बैठे सभी हैं निकम्मे, तन्हा कैसे चल दे जो संग उनके रहते। अच्छा हो बुरा हो ये रब की है मर्जी , अकड़ में पड़े थे ऐसा हम थे कहते। समय जो फिरा है तो हम भी हैं चिंतित, उसी ने ठगा है जो संग मेरे रहते।  घाव ऐसा दिया है कहां तक सहे हम, दर्द की इंतहा हो गई सहते-सहते। नाकामी के दर पे खड़े हो गए जब, बड़ों की बातों को मिथ्या कहते-कहते। जीवन की राहें कठिन लग रही है। मंजिल दिख रही है मगर ढहते-ढहते। बड़े शौक से सुन रहा था जमाना,  बस हम ही ना समझे,जैसा वो थे कहते। पतवार भी दी मंजिल भी बताया, भंवर में फंसे हम कहां बहते-बहते।  जो तुम सो गए हो,समय थोड़ा बीता, हीरा हमनें खोया, पत्थर हम समझते।२       अनिल कुमार मंडल लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

तिलतिक भाल

 आज तुझे एक बात बताऊं,हिज्र में गलती दाल की। सीमा पर बैठा सिपाही भारत मां के लाल की। रो-रो कर वह सुना रहा था, दर्द वो अपने हाल की।  पिछले बरस तस्वीर में जिसने,देखा रूप कमाल की।  कुछ दिन पहले ब्याह रचाकर,लाया था वह पालकी।  कुछ पल वनिता के संग बीता,आया बुलावा लाल की।  सज धज कर सीमा पर पहुंचा,लड़ रहा था जंग कमाल की।  तन तो उसका सीमा पर था,फिक्र थी गोरे गाल की। उसको चिंता सता रही थी सिंदूर तिलकित भाल की। उसको चिंता सता रही थी सिंदूर तिलकित भाल की।                                 अनिल कुमार मंडल                          लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

दिनकर की मिट्टी

 मैं दिनकर की मिट्टी से कुछ खास बताने निकला हूँ।  भारत था सोने की चिड़िया लाश बताने निकला हूँ।  मुगल,हुन,फ्रांसीसी आए सब लगे थे देश चुराने में।  वह तभी हमें लूट पाए थे,गद्दार था अपने घर आने में। अंग्रेजों ने भी खूब लूटा मीर जाफर था कई जमाने में। चार लाख बातिश हजार का खून है ये दिन लाने में। सैकड़ों बरस लगा दी उसने सन सैंतालीस को लाने में। काले को सत्ता पाने में गोरों से देश छुड़ाने में। तुम कहते हो आजादी आई है,गांधी के चरखा चलाने में । इतिहास ही तुमने बदल डाली,चापलूसी के गीत सुनाने में। काले अब देश को लूट रहे,सच कहो अगर यह झूठ लगे। यह देश फिर से सज सकता था, जो लगे पेड़ वह ठूठ लगे। पूर्ण स्वराज का सपना भी छल लगता आज बताने में। गोरों ने हमको सत्ता दी,क्यों शर्म है तुझे जताने में । गोरों से ज्यादा काले ने यह देश डुबो दी खाने में। समझौते में फिर देश फंसा,ये लगे हैं कर्ज उठाने में। आर्थिक गुलामी निकट लगे अमेरिका के बहकाने में। बस इतनी सी बातें कर संत्रास बताने निकला हूँ। मैं दिनकर की मिट्टी से कुछ खास बताने निकला हूँ ।               ...

बदलती जिंदगी

 हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी। बचपन जो पीछे छोड़ दी वही थी जिंदगी। कागज के पीछे भागते क्या यह है जिंदगी रोटी में उलझ गई है,थीं बेफिक्र जिंदगी। हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी।  जवां हुआ तो साथ हो गई है जिंदगी। तन्हा नहीं गुजरेगी जो बची है जिंदगी।  दो और दो चार हो गई है जिंदगी। हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी। खुदा की इबादत से ना गुजरे यह जिंदगी। मेहनत बिना न रोटियां लाती है जिंदगी। परिश्रम बिना न तन को ये भाती है जिंदगी।  बच्चे बड़े हुए,अब थोड़ी है जिंदगी। सभी बिछड़ गए बची है दो ही जिंदगी। जीर्ण तन हुआ लगे हैं बोझ जिंदगी। हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी  बचपन जो पीछे छोड़ दी वहीं थी जिंदगी।  पैदा हुआ तो स्वास संग शुरू थीं जिंदगी।  स्वास को छोड़ा तो जा रही है जिंदगी। हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी।                        अनिल कुमार मंडल                   लोको पायलट गाजियाबाद

कभी सपनों में मेरे भी आया करो

 कभी सपनों में मेरे भी आया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कब तलक खामोशी से यू बैठेंगे हम। कभी हमसे भी नजरें मिलाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। मैं जो न न करू की न छेड़ो हमें। हो जो रहमो करम छेड़ जाया करो। कभी सपनों में मेरे भी आया करो। कब तलक एक दूजे से हो हम खफ़ा। सात फेरे लिये तो निभाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कभी बारिश का मौसम सताये अगर। बेबजह जाके उसमे नहाया करो। कभी सपनों में मेरे भी आया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। अकेले में बिस्तर जो काटे मुझे। नींद आने से पहले जगाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। हिज्र का डर जो तुमको सताये कभी। सर को सज़दे में तुम भी झुकाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कभी नजरें भी हमसे मिलाया करो।         अनिल कुमार मंडल

हिंदी की अभिलाषा

देवनागरी लिपि हूं मैं ,मेरी भी अभिलाषा सुन। अखंड भारत का जन्म है मेरा, मैं हूं हिंदी भाषा सुन। मैं हूं तेरी प्यारी हिंदी,रखती हूं तुझसे आशा सुन। ग्रंथालय में मुझे सजाकर,मत दे मुझे निराशा सुन। हर एक कंठ में बास हो मेरा,पूरी हो मेरी आशा सुन। देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन। सभी मुझे जी भर के बोले,हो ना मुझे निराशा सुन। मैं ना चाहु शीशमहल,मुझसे ना कोई प्यासा सुन। यूं ही किताबों में लिखते हो,हिंदी है मेरी भाषा सुन। पर तुम इंग्लिश गिटपिट बोले,होती हैं मुझे हताशा सुन। देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन। 14 सितंबर आते ही,लिखते मेरी परिभाषा सुन। कुछ कहते भारत की बिंदी,कुछ कहते राह का लासा सुन। देशभक्त मुझे बिंदी कहते,नवयुवक समझे लासा सुन। मानसिक गुलामी बैठ गई है,गोरों ने दिया तुझे झांसा सुन। मेरा भी इतिहास समझ लो, थोड़ा कर जिज्ञासा सुन। देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन। दिनकर,बच्चन,प्रेमचंद्र ने ,दी थी मुझे दिलासा सुन। नेताओं से छली गई मैं, हो गई कई तमाशा सुन। संसद में संग्राम हो जाए,कर दूं अगर खुलासा सुन। देवनागरी लिपि हूँ मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन। हर एक कंठ में बास हो...

पवित्र हिंदी

 गंगा सी पवित्र हैं हिंदी, सागर सा विशाल हैं। शब्दों का भंडार हैं इसमें, ये भारत का भाल हैं। दिनकर ,बच्चन प्रेमचंद हुए, इनके पुत्र हजार हैं। मैकॉले के पुत्र को भाषा, ये नहीं हैं स्वीकार हैं। हिन्द देश का खाते हैं, हिंदी पे करते वार हैं। हिंदी की सेवा में देखो, खोये कितने लाल हैं। गंगा सी पवित्र हैं हिंदी, सागर सा विशाल हैं। हम भी इनके वीर पुत्र, चलो इसका मान बढ़ाये। हिंदी को सम्मान मिले, चलो ऐसा कुछ कर जाये। हम दिनकर, न बच्चन बनते, जीतना हो कर पाये। बिन हिंदी के भारत कैसे, विश्व गुरु बन पाए। हिंदी अपनी साफ छवि की, इंग्लिश तो मायाजाल हैं। इंग्लिश का जो त्याग करें हम, हिंदी हो मालामाल है। हिंदी में संस्कार हैं बसता इंग्लिश तो हैं कंगाल हैं। गंगा सी पवित्र हैं हिंदी, सागर सा विशाल हैं।              अनिल कुमार मंडल          लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

चिंतन

                           चिंतन चलो आज बच्चों को पढ़ाये, इंग्लिश स्कूल में नाम लिखाये। पर ऐसा करने से पहले थोड़ा चिंतन करते जाये। मैकॉले की शिक्षा से क्या भारत अपना गौरव पाये। हम सब एक चिंतन कर ऐसा आने वाला चित्र बनाये। क्या भारत वो भारत होगा या गुलामी घर कर जाये। तन की गुलामी से छुटे पर मन की गुलामी छुट न पाये। पुरखों ने कुछ की हैं ग़लती, उनसे क्यों हम ताल मिलाये। आज ख़ुद में ये चिंतन कर ले, बच्चों को संस्कार दिलाये। छोड़ स्कूल अंग्रेजी वाली वापिस हम गुरुकुल में जाये। शिक्षा और संस्कार जहाँ था,वैसा भारत फिर से पाये। चलो आज बच्चों को पढ़ाये, इंग्लिश स्कूल में नाम लिखाये। पर ऐसा करने से पहले थोड़ा चिंतन करते जाये।       अनिल कुमार मंडल लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद        9205028055

रोटी रोजगार

बजी सारंगी तंद्रा टूटी,हम तो मांगते हैं अधिकार । नहीं चाहिए जिओ डाटा,हमको दो रोटी रोजगार। युवाओं की भीड़ बढ़ रही,क्या करके ये खाएंगे। रोटी,कपड़ा और मकान कहो,उनके कहां से आएंगे। सरकारें तो आती जाती,देश करेगा उनको याद। जो देगा रोजी और रोटी,बांकी सब है उसके बाद। अभी तो यह तंद्रा से जागे,क्या होगा जागे स्वभिमान।  हाथ लिए जब चलेंगे करने,अपने शीश का ये बलिदान। नवभारत का सृजन जो होगा,गद्दारों की जाए जान । कितना मोहक दृश्य बनेगा,सजेगा फिर से हिंदुस्तान। ऐसी क्रांति आने वाली,जल्दी ही होगा आगाज। अभी तो है सरकार भरोसे,जल्दी ही निकलेगीआवाज।  पुरखों ने जो देखे सपने,ऐसा भारत हो तैयार। धर्म जरूरी पड़ बिन रोटी,नहीं चले कोई सरकार। विश्व बैंक का चक्कर छोड़ो,अपनों का कर दो उद्धार।  उन के चक्कर में जो पड़ेंगे,देश का होगा बंटाधार। अभी तो संख्या लाखों में है,क्या होगा जब अरबों पार।  पेट के खातिर हर युवा के,कर में हो कोई हथियार। बजी सारंगी तंद्रा टूटी,हम को दो रोटी रोजगार। नहीं चाहिए जिओ डाटा, हम तो मांगते हैं अधिकार ।                  अनिल कुमा...

माँ अक्षरा की सेवा

 हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये। माँ अक्षरा की सेवा कर,जीवन मे कुछ कर जाये।-२ गोरों की निर्धन अंग्रेजी,हम तो समझ न पाये। हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये। शब्द तो इसके चोरी के, हमसे क्या ये टकराये। माँ अक्षरा की सेवा कर,जीवन को सफल बनाये। खाते जो हिंदी की कमाई, इंग्लिश तान सुनाये। ऐसे गोरों के पुतो से, हम हिंदी को बचाये। हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये। माँ अक्षरा की सेवा कर,जीवन को सफल बनाये। दिनकर, बच्चन बन नहीं सकते, जितना हो कर पाये। हिंदी का परचम लहरा ,इंग्लिश का जनाजा लाये। हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये माँ अक्षरा की सेवा कर,जीवन को सफल बनाये। याद करें हम बचपन अपना, सपने हिंदी में आये। सपने कैसे पुरे हो जब, पथ में इंग्लिश आये। हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये। वियर्थ नही ये जीवन बीते, एक इतिहास बनाये। माँ अक्षरा की सेवा कर,जीवन को सफल बनाये। हिन्द देश के वासी हम, हिंदी का मान बढ़ाये।                        अनिल कुमार मंडल               ...

जय हिंदी जय हिंदुस्तान

जय हिंदी जय हिंदुस्तान ,ऐसा अपना देश महान । हिंद देश के हम हैं सिपाही,हिंदी है अपनी पहचान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान ,ऐसा भारत देश महान । दयानंद और गांधीजी थे,हिंदी के दो पुत्र महान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान अपनी जान लगा दी जिसने ,बढ़ जाए हिंदी का मान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान। पर गोरों के चाल के आगे, नतमस्तक थे कुछ शैतान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान सत्ता का जब लेनदेन था,मिला नहीं हिंदी को मान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान समझौते में लिखा था ऐसा,हिंदी का कर दो अपमान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान सत्ता मद में डूबे नेता,समझ ना पाए इंग्लिश तान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान जिसका नतीजा आज भोगता,देखो अपना हिंदुस्तान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान मैकाले के पुत यहां पर,गाते हैं अंग्रेजी तान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान,ऐसा अपना देश महान । हिंद देश के हम हैं सिपाही,हिंदी है अपनी पहचान। जय हिंदी जय हिंदुस्तान हिंदी की बस एक समस्या,इनके बेटे हम नादान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान मैकाले के पूत के संग-संग,हम भी हो गए मूर्खिस्तान।  जय हिंदी जय हिंदुस्तान जो गाये अंग्रेजी गाना,हम कहते तुम हो विद्वान । जय हिंदी जय हिंदुस्तान हिंदी के ह...

मैया भारती

                     मैया भारती जय-जय वीणापाणि मैया, जय हो मैया भारती।-2 हम तो आपके पुत्र हैं माता,करते हैं हम आरती। करबद्ध याचना करते माता, करबद्ध तुझे पुकारती। जय-जय वीणापाणि मैया, जय हो मैया भारती।-2 तुम हो हंसवाहिनी मैया, तुम हो विद्यादायिनी। सदबुद्धि देकर के माता, अपने पुत्र सवांरती। जय-जय वीणापाणि मैया, जय हो मैया भारती।-2 माँ वागेश्वरी सुनो अरज मेरी, करते हम तो आरती। बीच भँवर में फंसे पुत्र हम,आप ही पार उतारती। जय-जय वीणापाणि मैया, जय हो मैया भारती।-2 सूरदास ,मीरा संग मैया, हमको भी स्वीकार ती। जय-जय वीणापाणि मैया, जय हो मैया भारती।-2         अनिल कुमार मंडल    लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद ये मेरी स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित रचना हैं।

मुक्तक

 1:-शांत सरोवर बहता दरिया,       बादल अब आक्रांत कहां।      न नभ में वो बादल घिरते,       अब वैसी बरसात कहाँ,      तेज किरण ले दिनकर आये,        पर वैसी हालात कहाँ ।      मनु ने खूब बिगाड़ा मौसम,        चाँदनी वाली रात कहाँ।  2:- हम हैं कलम के वीर सिपाही, हमको देश जगाना हैं।        बेकारी बढ़ती ही जा रही, लपटें यहाँ भी आना है।       अपने कलम को मौन न रखो,इससे आग लगाना हैं।        अपने हर्फ़ की चिंगारी से, दिल्ली की तंद्रा टुटेगी     बरसों कलम को गिरवीं रखा, अब तो देश बचाना है। 3:- अपने कर में कलम उठाओ, लिखना बहुत जरूरी हैं।          पेट हैं खाली,टुटा छत है ,बचना बहुत जरूरी है।          अगर चाहते रोटी के बिन, बच्चें दर-दर न भटके         कलम से ऐसी आग लगाओ, दिखना बहुत जरूरी हैं।                ...