मुक्तक

 1:-शांत सरोवर बहता दरिया,

      बादल अब आक्रांत कहां।

     न नभ में वो बादल घिरते,

      अब वैसी बरसात कहाँ,

     तेज किरण ले दिनकर आये,

       पर वैसी हालात कहाँ ।

     मनु ने खूब बिगाड़ा मौसम,

       चाँदनी वाली रात कहाँ। 


2:- हम हैं कलम के वीर सिपाही, हमको देश जगाना हैं।

       बेकारी बढ़ती ही जा रही, लपटें यहाँ भी आना है।

      अपने कलम को मौन न रखो,इससे आग लगाना हैं।

       अपने हर्फ़ की चिंगारी से, दिल्ली की तंद्रा टुटेगी

    बरसों कलम को गिरवीं रखा, अब तो देश बचाना है।


3:- अपने कर में कलम उठाओ, लिखना बहुत जरूरी हैं।

         पेट हैं खाली,टुटा छत है ,बचना बहुत जरूरी है।

         अगर चाहते रोटी के बिन, बच्चें दर-दर न भटके

        कलम से ऐसी आग लगाओ, दिखना बहुत जरूरी हैं।

    


                                    अनिल कुमार मंडल

                             लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद


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