हिंदी की अभिलाषा
देवनागरी लिपि हूं मैं ,मेरी भी अभिलाषा सुन।
अखंड भारत का जन्म है मेरा, मैं हूं हिंदी भाषा सुन।
मैं हूं तेरी प्यारी हिंदी,रखती हूं तुझसे आशा सुन।
ग्रंथालय में मुझे सजाकर,मत दे मुझे निराशा सुन।
हर एक कंठ में बास हो मेरा,पूरी हो मेरी आशा सुन।
देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन।
सभी मुझे जी भर के बोले,हो ना मुझे निराशा सुन।
मैं ना चाहु शीशमहल,मुझसे ना कोई प्यासा सुन।
यूं ही किताबों में लिखते हो,हिंदी है मेरी भाषा सुन।
पर तुम इंग्लिश गिटपिट बोले,होती हैं मुझे हताशा सुन।
देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन।
14 सितंबर आते ही,लिखते मेरी परिभाषा सुन।
कुछ कहते भारत की बिंदी,कुछ कहते राह का लासा सुन।
देशभक्त मुझे बिंदी कहते,नवयुवक समझे लासा सुन।
मानसिक गुलामी बैठ गई है,गोरों ने दिया तुझे झांसा सुन।
मेरा भी इतिहास समझ लो, थोड़ा कर जिज्ञासा सुन।
देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन।
दिनकर,बच्चन,प्रेमचंद्र ने ,दी थी मुझे दिलासा सुन।
नेताओं से छली गई मैं, हो गई कई तमाशा सुन।
संसद में संग्राम हो जाए,कर दूं अगर खुलासा सुन।
देवनागरी लिपि हूँ मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन।
हर एक कंठ में बास हो मेरा,बस इतनी अभिलाषा सुन।
देवनागरी लिपि हूं मैं,मेरी भी अभिलाषा सुन।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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