बदलती जिंदगी

 हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी।

बचपन जो पीछे छोड़ दी वही थी जिंदगी।

कागज के पीछे भागते क्या यह है जिंदगी

रोटी में उलझ गई है,थीं बेफिक्र जिंदगी।

हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी। 

जवां हुआ तो साथ हो गई है जिंदगी।

तन्हा नहीं गुजरेगी जो बची है जिंदगी। 

दो और दो चार हो गई है जिंदगी।

हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी।

खुदा की इबादत से ना गुजरे यह जिंदगी।

मेहनत बिना न रोटियां लाती है जिंदगी।

परिश्रम बिना न तन को ये भाती है जिंदगी। 

बच्चे बड़े हुए,अब थोड़ी है जिंदगी।

सभी बिछड़ गए बची है दो ही जिंदगी।

जीर्ण तन हुआ लगे हैं बोझ जिंदगी।

हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी 

बचपन जो पीछे छोड़ दी वहीं थी जिंदगी। 

पैदा हुआ तो स्वास संग शुरू थीं जिंदगी। 

स्वास को छोड़ा तो जा रही है जिंदगी।

हर पल हर घड़ी बदल रही है जिंदगी।


                       अनिल कुमार मंडल 

                 लोको पायलट गाजियाबाद

Comments

Popular posts from this blog

Best hindi poem -मजदूर

पुस में नूतन बर्ष

देख तेरे संसार की हालत