तिलतिक भाल
आज तुझे एक बात बताऊं,हिज्र में गलती दाल की।
सीमा पर बैठा सिपाही भारत मां के लाल की।
रो-रो कर वह सुना रहा था, दर्द वो अपने हाल की।
पिछले बरस तस्वीर में जिसने,देखा रूप कमाल की।
कुछ दिन पहले ब्याह रचाकर,लाया था वह पालकी।
कुछ पल वनिता के संग बीता,आया बुलावा लाल की।
सज धज कर सीमा पर पहुंचा,लड़ रहा था जंग कमाल की।
तन तो उसका सीमा पर था,फिक्र थी गोरे गाल की।
उसको चिंता सता रही थी सिंदूर तिलकित भाल की।
उसको चिंता सता रही थी सिंदूर तिलकित भाल की।
अनिल कुमार मंडल
लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद
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