महबूब का चेहरा

सुबह शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है।

उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।

घड़ी की सुइया धीमी लगती वक्त नहीं कट पाता है। 

वो तो सीमा पर बैठे हैं,शाम को फोन ही आता है। 

उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है। 

सुबह-सुबह जल्दी में रहते,ऐसा वो बतलाता है।

उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है। 

जब भी छुट्टी में आता है,हमको खूब रिझाता है।

उन्हीं लम्हों को याद करूं मैं,हमको वही रुलाता है।

सुबह-शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है।

उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।

हम तो विरह में जीते लेकिन,हिज्र का दर्द सताता है।

सुबह शाम जब आसमान में केसरिया लहराता है।

उसी समय महबूब का चेहरा सामने मेरे आता है।


 अनिल कुमार मंडल 

रेल चालक/गाजियाबाद 

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