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Showing posts from October, 2020

कोरोना एक साजिश

एक राष्ट्र हो एक सरकार,बिल गेट्स का यह है विचार। कोरोना का भाई भय दिखाकर,करना चाहे नरसंहार। पहले चरण में भय फैलाया, दूसरा हैं टिका औजार। जनसंख्या को कम ये करेंगे, लोग मरेंगे लाखों हजार। तीसरा जो ये काम करेंगे, तीव्र गति होगा संचार। इससे भी कुछ लोग मरेंगे, मानवता को होगी हार। शायद उनके साथ मिला हैं,भारतीय मीडिया और सरकार। लॉकडौन हैं एक बहाना, मानते हैं ये गेट्स विचार। भारतवासी घर से निकलो, कितना सहोगें अत्याचार। तुमने अपनी जिंदगी जी ली, बच्चों का कर दो उद्धार। देखो देश गुलाम न होवे, साजिश का होकर के शिकार। आने वाली पीढ़ी न समझे, हमको इसका जिम्मेदार। बिल गेट्स का सपना तोड़े, मानवता की हो जयकार। हारेगा वो अत्याचारी, बरसेगा चहु और ही प्यार।                      अनिल कुमार मंडल                   रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

संवाद

 गांधी की तस्वीरे टांगे,आजादी की याद में। सौराष्ट्र से सौदागर आया, देश डुबो दी गाद में। जुमले का ये बांधे पुलिंदा,करता ये विश्वास से, देश का कोना-कोना बेचा,कागज से संवाद में।                अनिल कुमार मंडल             रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद 2:-    सौदागर ने देश बेची दी ,कोरोना की आड़ में। युवाओं के सपने बेचे, बहा दिया हैं बाढ़ में। हम भी जाने, तुम भी जानो, जानता पुरा देश हैं, थोड़ा जनता हिम्मत कर ले, जाएंगे ये भांड में।             अनिल कुमार मंडल          रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

शिक्षा में बदलाव

 पिछले तीस वर्ष में शिक्षा में आंखोंदेखी बदलाव जो भारतीय परिवेश में अंग्रेजीयत को ढूंसने का प्रयास लगातार चल रहा है,आज मैं उसकी चर्चा करूँगा, वर्ना हमारे बच्चों के शुरूआती के कक्षा में जो पढ़ाई बी फॉर बॉल होती थी, उसकी जगह बी फॉर ब्रेड ना कर दी जाती।इसी प्रकार सी, डी ,ई,..आदि से भी छेड़छाड़ की गई है,सी फॉर कैट से केक हो गया डी फॉर डॉग से डॉग है,परंतु फोटो बदल दी गई इ फॉर एलीफैंट से एग हो गया जो एक सोची समझी साजिश है। हमारे भारतीय संस्कृति को बर्बाद करने की और छोटे से उम्र से ही हमारे बच्चों के अंदर अंग्रेजीयत भरने की जिसके फलस्वरूप परिवार टूट रहा है ,जिससे बचने का केवल एक ही उपाय है ,सभी विषयों की शिक्षा हिंदी माध्यम में कराने का प्रयास किया जाना चाहिए जो सभी विद्यालय में समान रूप से लागू हो सके

चार जहर

 चार जहर दे घर से निकाल, सुखमय जियो सैकड़ों साल। उसके बाद जो मौत आएगी, कष्ट न कोई दे पाएगी। पहला जहर जिसे कहते चीनी, मौत ले आये भीनी-भीनी। मौत न देती आसानी से, हाथ धुलाये जवानी से। दूजा हैं जो नमक समुद्री, जीवन कर दे गुदड़ी-गुदड़ी। बी पी,टेंशन यही बढ़ाये, हृदय रोग का करे उपाय। तीसरा आया दुधिया मैदा, जीवन भर दे मार लबेदा। गठिया,मोटापा लेकर आये, डाईबिटीज में होवे सहाय। चौथा बचा रिफाइन तेल, इसको खा लो जीवन फैल। हृदयघात और लकवा लाता, ब्रैनस्ट्रोक से गहरा नाता। इसलिए सुन लो मेरी बात, रोग न पुछे धरम न जात। तन जैसा पायेगा रस, वैसा जीवन होय सरस।      अनिल कुमार मंडल    रेल चालक /ग़ाज़ियाबाद

दर्पण

 हैं जिसका इतिहास चिरंतन,तीन तरह के होते दर्पण।  जीवन में तीनों उपयोगी अवतल,उत्तल,समतल दर्पण। तीनों कि मैं बात करूंगा,पहले सुन लो अवतल दर्पण। ये चेहरे को बड़ा दिखाता,हजामत के काम हैं आता।  दंत वैद्य के ये हैं सहायक,सर्च लाइट का बीम बढ़ाता।  अगली जिसकी बात सुनाऊं,वो होता है उत्तल दर्पण।  दूर की चीजें पास दिखाता,दुर्घटनाएं कई बचाता।  तीखा मोड़ या सीधी सड़के,उल्टी दिशा का ध्यान कराता। तीसरा जो दर्पण है होता,सब नर नारी को है भाता।  नैन मेरे जो दुनिया देखे,ये नैनों का रूप दिखाता।  झूठ फरेब यह कर नहीं पाता,सच का इससे गहरा नाता। इसके बिना तो मानव कभी न,अपनी सूरत देख सुहाता। नारी के सजने के पल को,ये तो अपने दिल में बिठाता।  महंगा सस्ता सभी भाव के,होते हैं यह तीनों दर्पण।  इसकी महिमा बड़ी निराली,कुछ तो करते लाखों अर्पण। हैं जिसका इतिहास चिरंतन तीन तरह के होते दर्पण।  जीवन में तीनों उपयोगी,अवतल,उत्तल, समतल दर्पण।                               अनिल कुमार मंडल   ...

सावन कुछ कहता हैं।

सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। उस पे जब ये चले हैं पुरवा,तन को जलाये कोई अगन।  सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। विरहवेदना सही न जाए,2 मिलने का कोई करो जतन।  सावन की ये रिमझिम बारिश, कुछ कहती है सुनो सजन। बरखा और इस भूमि का देखो,2 ऐसे में हो रहा मिलन।  सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन।  भूधर लिपटे हरियाली में,2 जलधर से कर रहा लगन। सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। मोर,पपीहा झूमे गाये, 2 जीव-जंतु हैं सभी मगन।  सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। ये मौसम तनहा जो बीते,2 पछताएंगे करें भजन। सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। मौसम के भाषा को समझो,2 कहती है क्या ठंडी पवन। सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन। उस पर जब ये चले हैं पुरवा,2 तन को जलाये कोई अगन बीत गया जो ये सावन,2 फिर तरसेंगे हम जनम-जनम। विरहवेदना सही न जाए, मिलने का कुछ करो जतन। सावन की ये रिमझिम बारिश,कुछ कहती है सुनो सजन।  उस पर जब ये चले हैं पुरवा,तन को जलाये कोई अगन।               ...

गोलगप्पे

माँ शारदे को नमन🙏🙏🙏🙏🙏कविवाणी कविता काव्यपाठ के मंच को नमन🙏🙏🙏🙏🙏 सप्ताहिक प्रतियोगिता दिनांक:-06/10/2020 विषय:- मेले की सैर के गोलगप्पे बहुत दिनों के बाद गए थे,बापू के संग मेला। मेला में मैंने कर दी थी,बहुत ही बड़ा झमेला। बात हैं ये उन दिनों की भाई,सर्दी में खाया केला। नजला से मैं पीड़ित बहुत,फिर भी पकड़ा था ठेला। मुझको बापू दो गोलगप्पे,दस का खाऊ अकेला। बापू ने मुझको समझाया,छोड़ दे बेटा ठेला। नजला से तू बहुत पीड़ित हैं,खा ले गुड़ का ढेला। मैंने भी बापू से कह दी,जाओ घर को अकेला। मैं तो यही रहूँगा बापू,छोडूंगा नही ठेला। फिर बापू ने मुझको धोया,किस्सा बना रंगीला। बरसों पुरानी बात हुई पर,भूला नहीं वो मेला। गोलगप्पे ने पिटवाया ,पर अद्धभुत था वो मेला। काश कोई वापिस कर जाये,बीता मधुमय बेला।2       अनिल कुमार मंडल     रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

अश्कों के गोले

          अश्कों के गोले ये पलकें, ये आंखें, ये अश्कों के गोले। जो  नैनो  से  छलके, कई  राज खोले। जो गम हो खुशी हो, ये दोनों  में  बोले। सुख,दुःख के पल को  ये तन्हा ही तोले। खुशी की हो घड़िया, ये पलके भींगो ले। ये  पलके  भींगो  के भी, करती ठिठोले। ये पलकें, ये आंखें, ये  अश्कों  के गोले। जो  नैनों  से  छलके, कई  राज  खोले। जो दुःख का समय हो, हृदय ये  टटोले। करें दिल को ये हल्का,लगते हो फफोले। देती फिर दिलाशा,की खुशियां संजोले। किसी ने  दी  पीड़ा, तो बन जा तु शोले। उनके  भी  दामन  में, तु  भर दे ये गोले। ये  पलके, ये आंखे, ये अश्कों  के गोले।           अनिल कुमार मंडल       रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

प्यारी बेटी

 आपस में ये खूब है लड़ती, मेरी है दो प्यारी बेटी।  एक मनाओ दूजा रुठे,बापू की है न्यारी बेटी। इसका जब से जन्म हुआ है मेरी हैं दुख हारी बेटी।  खुशियां घर में ऐसे बरसे जन्नत की फुलवारी बेटी।  खुशियों से दामन भर आया ऐसी राज दुलारी बेटी।  दुनिया चाहे कुछ भी कह ले बापू पर नहीं भारी बेटी। सबके स्वास्थ्य का ध्यान है रखती होती है गुणकारी बेटी। बापू का जो घर छूटे तो पिया की होगी प्यारी बेटी। दो-दो घर में राज करेगी मेरी राजकुमारी बेटी। आपस में यह खूब है लड़ती मेरी है दो प्यारी बेटी।                      अनिल कुमार मंडल                 रेल चालक /गाजियाबाद

वैदिक थी माता की रसोई

वैदिक थी माता की रसोई, पवन किरण से न्यारी। माँ के हाथ की रोटी हो और, हांडी की हो तरकारी। चूल्हे की सौंधी खुशबू,जो भूख बढ़ाये भारी। भाव जो खाने में भरती थी, स्वाद थी बहुत निराली। खा के तन-मन दमके मेरा, कलम हुई हैं कटारी। विद्यावती या पदमावती माँ सबने पुत निखारी। पौष्टिक भोजन देती माता, पुत्र हुए क्रांतिकारी। जैसा अन्न हो वैसा ही मन, गीता में कहे मुरारी। तभी तो भारत विश्व गुरु था,आये थे कई बलिहारी।          अनिल कुमार मंडल      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद माँ शारदे को नमन 🙏🙏🙏🙏🙏उदय कमल सहित्य संगम के मंच को नमन🙏🙏🙏🙏🙏 प्रभात लेखन:-भाग 11 दिनांक:-१/१०/२०२० दिन:- गुरुवार कही दहेज की लुट हैं,कही रतिपति है श्राप। नारी हर दिन जल रही, नर कर रहा हैं पाप। लाडो कर में शस्त्र संभालो,बहुत सहा संताप। तेरे  कोख  से आया  हैं, तेरा  ही अभिशाप।        अनिल कुमार मंडल      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

शहर का चिकचिक

 शहर का चिक-चिक छोड़ बलमुआ,  चलो चले अब गांव रे । वहीं पे अपना बचपन ढूंढे,  पेड़ो की थी छांव रे। शहर में ऐसे उलझे हैं, पायल में जैसे पाव रे। शहर का चिक-चिक छोर बलमुआ।  चलो चले हम गांव रे। गिल्ली,डंडा कौड़ी भी थी, कागज की थी नाव रे । शहरी जीवन बहुत कठिन हैं,  लोगों नहीं लगाव रे। शहर चिक-चिक छोड़ बलमुआ। चलो चले हम गांव रे।  कागज के पीछे भाग रहे हैं, लगी है जैसे दांव रे । प्रेम से लथपथ जीवन था वो,  ढूंढ रहे वही गांव रे। शहर का चिक-चिक छोड़ बलमुआ।  चलो चले हम गांव रे । चूल्हे पर रोटी बनती, माता भरती थी भाव रे। शुद्ध पानी थी, शुद्ध हवा  हर दिशा में था, सदभाव रे!   शहर का चिक-चिक छोड़ बलमुआ। चलो चले हम गांव रे ।               अनिल कुमार मंडल            रेल चालक /गाजियाबाद

नीर हरते हैं सारे पीड़

नीर हरते हैं सारे पीड़ ,मानव तुम क्यों होते अधीर। कैसी भी हो तन की पीड़ा,होने ना दे ये गंभीर। सेवन का बस सीख सलीका,स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर । नीर हरते हैं सारे पीड़,मानव तुम क्यों होते अधीर। ठंडा पानी जो पिएगा,कभी न पाए स्वस्थ शरीर । ना तो उसका रोटी पचता,ना पचता है खीर,पनीर। अन्य सड़े जो पेट के अंदर,हवा बनाए ये गंभीर। जा-जा अंग पे हवा ये घूमे,उसी अंग को देता पीड़। सेवन का बस सीख सलीका, स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर। मानव तुम क्यों होता अधीर,नीर हरते हैं सारे पीड़। स्वस्थ शरीर में जीवन बसता,रोग से बेहतर मृत शरीर। तभी तो जल जीवन कहलाता,इसके बिना न पूर्ण शरीर। एक चौथाई का ये तन हैं,तीन भाग हैं ,नीर शरीर। मानव तुम क्यों होते अधीर,नीर हरते हैं सारे पीड़। सेवन का बस सिख सलीका,स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर।2                     अनिल कुमार मंडल                  रेल चालक /गाजियाबाद

हंस वाहिनी शारदे मैया

 हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार।  दीन हीन हम आपके बच्चे हो हम पे उपकार।  हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार। करबद्ध हम तो याचना करते सुन लो मेरी पुकार।  हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार।  ज्ञान की ज्योति जला दो माता दूर करो अंधकार।  हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार। जीवन मेरा हो न निरर्थक मांगता में उपहार।  हंस वाहिनी शारदे माता हाय तेरे द्वार। तेरी जो कृपा बरसे मां हो मैया उद्धार। हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार।  यह जग तो मिथ्या है माता कैसे उतरे पार।  हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार। तेरी कृपा जो बरसे माता हो बैतरणी पार।  हंस वाहिनी शारदे माता आए तेरे द्वार। मोक्ष द्वार की कुंजी दो मां तेरी जय जयकार।  हंस वाहिनी शारदे माता आये तेरे द्वार।             अनिल कुमार मंडल        रेल चालक / गाजियाबाद

माता की महिमा

 माता की महिमा आज लिखूंगा, बन के मैं तो मूक,बधिर। बच्चों  पे  कोई  बाधा आये, माता  हो  जाती  हैं अधीर। बच्चों  की  शिक्षा  में  बाधा, बनकर  आये  लाखों  तीर। माता  सारी  बाधा  हरती, सह  लेती हर  तीर  का  पीड़। ढाल बनाती तन-मन अपना, लिखती बच्चों का तकदीर। रण  में  हो  या  जीवन  नैया, पुत्र से कहती  धरना  धीर। माँ की एक ही  लालसा रहती, बेटा चमके  बनके सुधीर। सब  दुःख  दाता मुझको दे दे, छू  न पाये  सुत को पीड़।        अनिल कुमार मंडल      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

सपनों में मेरे भी आया करो

 माँ शारदे को नमन🙏🙏🙏🙏🙏मंच को नमन🙏🙏🙏🙏🙏 मंच से जुड़े सभी कलमकारों एवम श्रोतागण को रेल चालक कवि अनिल कुमार मंडल का सादर प्रणाम🙏🙏🙏🙏🙏  सपनों में मेरे भी आया करो *********************** कभी सपनों में मेरे भी आया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कब तलक खामोशी से यू बैठेंगे हम। कभी हमसे भी नजरें मिलाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। मैं जो न न करू की न छेड़ो हमें। हो जो रहमो करम छेड़ जाया करो। कभी सपनों में मेरे भी आया करो। कब तलक एक दूजे से हो हम खफ़ा। सात फेरे लिये तो निभाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कभी बारिश का मौसम सताये अगर। बेबजह जाके उसमे नहाया करो। कभी सपनों में मेरे भी आया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। अकेले में बिस्तर जो काटे मुझे। नींद आने से पहले जगाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। हिज्र का डर जो तुमको सताये कभी। सर को सज़दे में तुम भी झुकाया करो। मैं जो रूठा करू तुम मनाया करो। कभी नजरें भी हमसे मिलाया करो।         अनिल कुमार मंडल      रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

सात फेरो के सात वचन

 सात वचन मुझको दो साजन,तुम मेरे हो जाओगे।  प्रथम वचन मैं मांगू तुझसे,जब तीरथ को जाओगे। धर्म-कर्म का काज हो कोई,मेरा साथ साथ निभाओगे। सात वचन मुझको दो साजन,तुम मेरे हो जाओगे। दूजा वचन मुझे दो साजन,सास-ससुर को मानोगे।  मेहमानों की मर्यादा कर, ईश्वर में खो जाओगे । सात वचन मुझको दो साजन, तुम मेरे हो जाओगे।  तीजा वचन मुझे दो साजन, हर घड़ी साथ निभाओगे।  युवा पौढ़ या जीर्ण शरीर हो, मुझे छोड़ नहीं जाओगे।  सात वचन मुझको दो साजन, तुम मेरे हो जाओगे। चौथा वचन मुझे दो साजन धन अर्जित कर लाओगे। पारिवारिक दायित्व निभा,सपनों का महल सजाओगे। सात वचन मुझको दो साजन, तुम मेरे हो जाओगे।  पंचम वचन मुझे दो साजन,राय हमारी मानोगे । लेने-देना और मंगल कार्य में,मुझको न ठुकराओगे।  सात वचन मुझको दो साजन, तुम मेरे बन जाओगे।  छठा वचन मुझको दो साजन,मेरा मान बताओगे। दुर्व्यसन से दूर रहोगे, हर घड़ी साथ निभाओगे।  सात वचन मुझको दो साजन, तुम मेरे हो जाओगे। सप्तम बचन मुझे तो साजन,पर नारी नहीं लाओगे।  तेरे मेरे प्रेम अगन में ,सौतन तुम ना लाओगे।  सात वचन मुझको दो साजन, त...

सच्चा था वो जमाना

 दिखावे के खातिर हमको,क्या-क्या पड़ा गवाना।  झूठी  लगे  ये  दुनिया,सच्चा  था  वो  जमाना । मोबाइल, टीवी  घर-घर बचपन हुआ  बेगाना। पता जो कोई पूछें, घर तक था लेके जाना। मिट्टी  का घर था पहले, खपरैल  कुछ ठिकाना।  गिल्ली  की  तेज से  वो  खपरैल  टूट  जाना।  जब खेलते थे  इसको, गाली भी पड़ता खाना। कागज की अपनी कश्ती बारिश में था नहाना।  कुछ  मित्र थे अजूबे,  रिश्ता  बड़ा  पुराना। सुख-दुःख में साथ रहते,करते नहीं बहाना।  बागों में घूमा करते,श्यामा के संग था गाना।  घंटों  थे  खेला करते ,अपना  कई  ठिकाना। चुरा के फल थे खाते, छुप जाते थे तहखाना।  कागज  की  अपनी कश्ती,बारिश में था नहाना।   पैसे में  जब से  उलझे,  बस रह गया  कमाना। वो  खेत  हमसे  रूठा ,खलिहान  है  बेगाना। शहर  में  आ गए हम,अब  चाहता  हूँ  जाना। कोई तो हमको  ला दे  गुजरा...

प्रभात लेखन भाग 13

 माँ शारदे को नमन🙏🙏🙏🙏🙏उदय कमल साहित्य संगम के मंच को नमन 🙏🙏🙏🙏🙏मंच से जुड़े सभी लोगो को रेल चालक,कवि अनिल कुमार मंडल का सादर प्रणाम🙏🙏🙏🙏🙏 प्रभात लेखन +गायन :-भाग-13 दिनांक-04/10/2020 दिन-रविवार बरसों पहले कुछ पत्तों पर, हमनें कुछ लिख डाले थे। अंग्रेजी  की  किताबो में , रख्खा  बहुत  संभाले थे। साथ रहेंगे हम जीवन भर,   कसमें  कई  निराले  थे। आज सुबह बापु के शब्द में, दर्द  मोहब्बत  वाले  थे। हमनें उनसे  रिश्ता तोड़ा, हम भी  तो  मतवाले  थे। तभी  तो  सूखे  पत्तों  को , किताबों से आज निकाले थे। सुबह की पहली चाय न चख्खी, पहले ये  कर डाले थे।               अनिल कुमार मंडल            रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

गाँधी बाबा आ जाओ(कविवाणी )

हे! गाँधी  बाबा  आ  जाओ, हिंदुस्तान  जगा  जाओ । झूठ,फरेब,और बेईमानी के तम को दूर भगा जाओ। हे! गाँधी बाबा आ जाओ  अंग्रेजी से सजता भारत,हिंदी का दीप जला जाओ। मंत्री भ्रष्ट हैं,कंत्री भ्रष्ट हैं,उनको राह दिखा जाओ।  हे! गाँधी बाबा आ जाओ , पिज्जा बर्गर में जो खोये, दाल रोटी समझा जाओ।  पश्चिम में खोये  युवा को, स्वदेशी समझा जाओ। हे! गाँधी बाबा आ जाओ  गाय बची तो बचेगा भारत,मूर्खों को समझा जाओ। मानसिक गुलामी में है भारत,ज्ञान का दीप जला जाओ। हे! गाँधी बाबा आ जाओ  इंडिया से हम बाहर निकले,ऐसा मंत्र सिखा जाओ।  भारत का हम सृजन करेंगे,नूतन पथ दिखला जाओ। हे! गाँधी बाबा आ जाओ                       अनिल कुमार मंडल                    रेल चालक /गाजियाबाद

ड्रग्स

बॉलीवुड और ड्रग्स का रिश्ता,  हो सकता हैं अटूट हैं। लेकिन हम भी नशे में न हैं,  ये भी तो एक झूठ हैं। कहीं नशा हैं लिखने का तो, कही पे धन की लुट हैं। कोई करता भगवा धारण, किसी को भाता सुट हैं। कुछ भारत पे जान लुटाता,  कुछ अंग्रेजी पुत हैं। ऐसा करना भी तो नशा हैं, सबको नशे की छुट है। कुछ तो पुरा बोतल पीता,  कुछ पीता दो घुट हैं। बॉलीवुड और ड्रग्स का रिश्ता, हो सकता हैं अटुट हैं। लेकिन हम भी नहीं नसेड़ी,  ये भी तो एक झूठ हैं।      अनिल कुमार मंडल     रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद