दर्पण
हैं जिसका इतिहास चिरंतन,तीन तरह के होते दर्पण।
जीवन में तीनों उपयोगी अवतल,उत्तल,समतल दर्पण।
तीनों कि मैं बात करूंगा,पहले सुन लो अवतल दर्पण।
ये चेहरे को बड़ा दिखाता,हजामत के काम हैं आता।
दंत वैद्य के ये हैं सहायक,सर्च लाइट का बीम बढ़ाता।
अगली जिसकी बात सुनाऊं,वो होता है उत्तल दर्पण।
दूर की चीजें पास दिखाता,दुर्घटनाएं कई बचाता।
तीखा मोड़ या सीधी सड़के,उल्टी दिशा का ध्यान कराता।
तीसरा जो दर्पण है होता,सब नर नारी को है भाता।
नैन मेरे जो दुनिया देखे,ये नैनों का रूप दिखाता।
झूठ फरेब यह कर नहीं पाता,सच का इससे गहरा नाता।
इसके बिना तो मानव कभी न,अपनी सूरत देख सुहाता।
नारी के सजने के पल को,ये तो अपने दिल में बिठाता।
महंगा सस्ता सभी भाव के,होते हैं यह तीनों दर्पण।
इसकी महिमा बड़ी निराली,कुछ तो करते लाखों अर्पण।
हैं जिसका इतिहास चिरंतन तीन तरह के होते दर्पण।
जीवन में तीनों उपयोगी,अवतल,उत्तल, समतल दर्पण।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक गाजियाबाद
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