गोलगप्पे
माँ शारदे को नमन🙏🙏🙏🙏🙏कविवाणी कविता काव्यपाठ के मंच को नमन🙏🙏🙏🙏🙏
सप्ताहिक प्रतियोगिता
दिनांक:-06/10/2020
विषय:- मेले की सैर के गोलगप्पे
बहुत दिनों के बाद गए थे,बापू के संग मेला।
मेला में मैंने कर दी थी,बहुत ही बड़ा झमेला।
बात हैं ये उन दिनों की भाई,सर्दी में खाया केला।
नजला से मैं पीड़ित बहुत,फिर भी पकड़ा था ठेला।
मुझको बापू दो गोलगप्पे,दस का खाऊ अकेला।
बापू ने मुझको समझाया,छोड़ दे बेटा ठेला।
नजला से तू बहुत पीड़ित हैं,खा ले गुड़ का ढेला।
मैंने भी बापू से कह दी,जाओ घर को अकेला।
मैं तो यही रहूँगा बापू,छोडूंगा नही ठेला।
फिर बापू ने मुझको धोया,किस्सा बना रंगीला।
बरसों पुरानी बात हुई पर,भूला नहीं वो मेला।
गोलगप्पे ने पिटवाया ,पर अद्धभुत था वो मेला।
काश कोई वापिस कर जाये,बीता मधुमय बेला।2
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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