नीर हरते हैं सारे पीड़
नीर हरते हैं सारे पीड़ ,मानव तुम क्यों होते अधीर।
कैसी भी हो तन की पीड़ा,होने ना दे ये गंभीर।
सेवन का बस सीख सलीका,स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर ।
नीर हरते हैं सारे पीड़,मानव तुम क्यों होते अधीर।
ठंडा पानी जो पिएगा,कभी न पाए स्वस्थ शरीर ।
ना तो उसका रोटी पचता,ना पचता है खीर,पनीर।
अन्य सड़े जो पेट के अंदर,हवा बनाए ये गंभीर।
जा-जा अंग पे हवा ये घूमे,उसी अंग को देता पीड़।
सेवन का बस सीख सलीका, स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर।
मानव तुम क्यों होता अधीर,नीर हरते हैं सारे पीड़।
स्वस्थ शरीर में जीवन बसता,रोग से बेहतर मृत शरीर।
तभी तो जल जीवन कहलाता,इसके बिना न पूर्ण शरीर।
एक चौथाई का ये तन हैं,तीन भाग हैं ,नीर शरीर।
मानव तुम क्यों होते अधीर,नीर हरते हैं सारे पीड़।
सेवन का बस सिख सलीका,स्वस्थ बनेगा पूर्ण शरीर।2
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक /गाजियाबाद
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