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Showing posts from November, 2020

हिंदुस्तान

 मीर जाफर बहुसंख्यक हो गए,  कैसे भारत देश बचाएं ।  लोकतंत्र ने शह दी इनको, तभी तो इनके पर निकल आएं ।  देर हुआ अंधेर नहीं है , आओ फिर से देश सजाएं । सुभाष बाबू के सपनोंवाला, स्वर्णिम हिंदुस्तान बनाएं । स्वर्णिम हिंदुस्तान बनाएं,  जीना कुछ आसान बनाएं, सबको रोटी सबको शिक्षा , भूखा ना रहे एक भी बच्चा। अस्पताल के बाहर ना मरे, बिना वेद के कोई जच्चा ।  नारी कोई जल ना जाए।  पैदा करके लड़की बच्चा । अपमानित ना हो कोई यशोदा, चच्चा के पाते ही सत्ता। नवविवाहित को जला न दे कोई, धन-दौलत का लोभी बच्चा। पश्चिम वाली सोच बदलकर, वैदिक हिंदुस्तान बनाएं।  चलो आज सपने को सजाएं, नूतन हिंदुस्तान बनाएं। गौमाता का मान जहां हो, स्वदेशी सामान जहां हो , मैकाले की शिक्षा ना हो , गुरुकुल का सम्मान जहां हो। वृद्धाश्रम हो एक ना कोई, जीर्ण शरीर का मान जहां हो । हिंदू हो या मुसलमान हो,  देशद्रोही बेजान जहां हो। पश्चिम वाला शोर नहीं हो, मीडिया फिर घूसखोर नहीं हो।  साफ पानी हो शुद्ध हवा हो,  शीतल पेय अपमान जहां हो।  पिज्जा बर्गर त्याग दे युवा,  उसको ऐसा ज्ञान ...

सैया बहकत जाये

 सुन रे सखिया पीहर वाली सैया बहकत जाये २ भोर भई मैं झाड़ू पोंछा २ खाट पड़े इतराई, मौरा सैया बहकत जाए, जब भी मौरा पल्लू ढलके २ दाँत मीचे ग़ुस्साये, सैया रूठ ही जाये, सैया बहकत जाए, दिन भर घुमे ये तो निठल्ले,2 रोटी कहाँ से आये, मौरा सैया बहकत जाए,2 मौरा कलेजा धक-धक धड़के,2 गौरी नारी कोई,पूछें तड़के, व्याकुल हो मैं लिपटु उनसे, सौतन न घर लाए, मौरा सैया बहकत जाए।2 सांझ पहर ठेके पे जाके,2 जो भी बचा लुटाए, मौरा सैया बहकत जाए,2   नशा चढ़े जब इनके ऊपर,2 औरन के बीबी सुपर-डुपर, कह के मुझे चिढ़ाये, मौरा सैया बहकत जाए। सारे जुल्म मैं इनके सहूँगी,2 बिन रोटी के,मैं रह लूंगी, सौतन सहा न जाये, मौरा सैया रूठ ही जाए।2 सती सावित्री बनू तो कैसे,2 सैया चाहु राम के जैसे, तभी तो दुःख बिसराए। मौरा सैया बहकत जाए।2 सुन रे सखिया पीहर वाली सैया बहकत जाये २ भोर भई मैं झाड़ू पोंछा २ खाट पड़े इतराई, मौरा सैया बहकत जाए,     अनिल कुमार मंडल लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

पुष्प चढ़ाए

 आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को। महीनों लड़ा जो मौत से कुश्ती, टाल रहा था काल को। आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को। बेला, जुही, पुष्प की कलिया कह रही मुझे न रोको तुम, उनके कदमों में बिखरूँगी, तोडूंगी हर ढाल को। मौत भँवर हैं सभी फंसेंगे, किसने रोका काल को। आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को।                     अनिल कुमार मंडल                  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद               ये लोकतंत्र कोई पर्व नहीं, ये लुट का एक मसौदा हैं। यहाँ देश बना हैं एक मंडी, जमीर का होता सौदा हैं। हैं सबसे बड़ा ये झूठ यहाँ की भारत अब गणतंत्र हुआ, कल गोरे केवल शासक थे, वो आज यहाँ के पुरोधा हैं।                            अनिल कुमार मंडल                       रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

चितचोर

 जब छाए बादल घनघोर, मौसम बन जाता चितचोर। इस मौसम में नशा हैं ऐसा,चित हो जाता भावविभोर। धन अर्जित कितना भी कर ले,कहाँ मिले ये लाख करोड़, ऐसे में कोई चाय पीला दे, मैं भी नाचूँ करूंगा शोर।                     अनिल कुमार मंडल                                  रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद मुक्तक:-  मेरे घर में आग लगी हैं, तुम क्यों बैठे हो खामोश। चिंगारी जब उड़े यहाँ से,फिर तेरे भी उड़ेगें होश। छोड़ दे अब ये तेरा मेरा,दोनों मिलकर करें प्रयास। बेशक घर जल जाये पुरा,नहीं रहे कोई अफसोस।            अनिल कुमार मंडल                रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

सावन बीता जाये

 बाली मोर उमरिया सखी रे, सावन बीता जाए।2 कोई देखें टकटकी लगा के, कोई कुछ कह जाए। मोरा अवहु न बालम आये,2 ये तो कमाये दिल्ली, पटना, डर-डर चलु घटे न घटना, हाथ मले पछताए, मोरा अब हु न बालम आए। धन दौलत की कमी नही हैं, सेजिया बदन जलाये। मोरा अब हू न बालम आए,2 बाली मोर उमरिया सखी रे, सावन बीता जाए।2 कोई देखें टकटकी लगा के, कोई कुछ कह जाए।                                     अनिल कुमार मंडल                                     रेल चालक/गाजियाबाद 

मुझको कुछ नही आता हैं

 गीत,गज़ल और दोहा क्या हैं,  मुझको कुछ नहीं आता हैं। शब्दों को पंगत में बाँधू,2 कर्णप्रिय बन जाता हैं। गीत,गज़ल और दोहा क्या हैं,  मुझको कुछ नहीं आता हैं। लोग करोड़ों हिंदी वाले,2 लाखों इसके ज्ञाता हैं। लेकिन मैं जो लिख पाता हूँ,2 और कहाँ लिख पाता हैं। गीत, गज़ल और दोहा क्या हैं, मुझको कुछ नही आता हैं। प्रणाम पत्र नही मेरी कसौटी,2 ये तो मुर्ख बनाता है। ये नही मेरे ज्ञान को तोले,2 ये तो इंग्लिश झांसा हैं। गीत, गज़ल और दोहा क्या हैं, मुझको कुछ नही आता हैं। शब्दों को पंगत में बाँधू,2 कर्णप्रिय बन जाता हैं। सुरमा अपने कर्म से देखो,2 जग में नाम कमाता हैं। कर्णप्रिय हो जिसकी वाणी,2 हर बाधा सुलझाता हैं। शब्दों को पंगत में बाँधू,2 कर्णप्रिय बन जाता हैं। मानव की विलक्षण प्रतिभा,2 कागज में कहाँ समता हैं। ये तन जिसने दिया है मुझको,2 सबसे बड़ा विधाता हैं। गीत,गज़ल और दोहा क्या हैं,  मुझको कुछ नहीं आता हैं। शब्दों को पंगत में बाँधू,2 कर्णप्रिय बन जाता हैं।   अनिल कुमार मंडल रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

पाया तेरा प्यार सजन

 त्रिविध वायु के झोंके जैसा  पाया तेरा प्यार सजन। कई सावन में बदन जलाया, पाकर के ये ठंढी पवन चलो कही मौसम न बदले, कर लेते हैं मधुरमिलन। त्रिविध वायु के झोंके जैसा, पाया तेरा प्यार सजन। जीवन हैं सुख-दुःख का सागर, कभी विरल तो कभी सघन। काल के चक्र को किसने रोका, आये गए कई रावण। त्रिविध वायु के झोंके जैसा  पाया तेरा प्यार सजन। मिलने को दोनों थे आतुर, किया था हमनें लाख जतन। त्रिविध वायु के झोंके जैसा , पाया तेरा प्यार सजन। हम तो हिम्मत हार चुके थे, कलम ने दी आशा की किरण। दाता का उपकार हुआ फिर,  तब जाकर ये हुआ लगन। त्रिविध वायु के जैसा पाया,  मैंने तेरा प्यार सजन । तुमको पाकर सब सुख पाया, बुझ गई जैसे कोई अगन। त्रिविध वायु के झोंके जैसा  पाया तेरा प्यार सजन।              अनिल कुमार मंडल           रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

लव जेहाद

 लव जिहाद के चक्कर से तुम बच के रहना ऐ लड़की । मीठी वाणी दुआ सलाम से बच के रहना ऐ लड़की । बापू की पगड़ी तुमसे सम्मान बचाना ऐ लड़की ।  किशोरावस्था आते ही तुम्हें घूरे दुनिया ऐ लड़की ।  इसी उमर में पथ भ्रमित से बच के रहना ऐ लड़की।  युवा तुम पे कुछ तंज कसेगे, बोले कुछ भी ऐ लड़की।  उसकी बातों को नकार कर चलना होगा ऐ लड़की। सीमा कोई पार करे तो लड़ना होगा ऐ लड़की। लव जिहाद के चक्कर से तुम बच के रहना ऐ लड़की। झूठी जाति झूठा मजहब झूठी वाणी ऐ लड़की। नाम भी झूठा काम भी झूठा बच के रहना ऐ लड़की। गाड़ी बंगला धन दौलत के मोह से बचना ऐ लड़की। मां बाप ने तुझको पाला है,बस उसकी सुनना ऐ लड़की। उसने दुनिया देखी है,वो भला करेंगे ऐ लड़की। लव जिहाद के चक्कर से तुम बच के रहना है लड़की।                   अनिल कुमार मंडल               रेल चालक/ ग़ाज़ियाबाद

करवाचौथ

 कविवाणी कविता काव्यपाठ लहार, भिंड ,मध्य प्रदेश दिनांक:-4/11/2020 दिन:-बुधवार विषय:-करवाचौथ मेरे चाँद तुम घर आ जाओ, बाट जोहती हैं दुल्हन। करके बैठी मैं श्रृंगार फिर,  हो जाने दो मधुरमिलन। करवाचौथ का व्रत करती मैं, पाऊ तुझको जन्म-जन्म। हरएक जन्म में साथ हो तेरा फिर क्यों बनूँगी मैं जोगन। बारह माह से इंतजार था, आन मिलो अब मेरे सजन। यू तो तुम अक्सर घर आते, आज जली हैं अलग अगन। दो दिन की तुम छुट्टी ले लो, कर लो मेरे लिए जतन। आज जो मेरी बात न मानी लाओगे क्या तुम सौतन। मेरे चाँद तुम घर आ जाओ, बाट जोहती हैं दुल्हन। करके बैठी मैं श्रृंगार फिर,  हो जाने दो मधुरमिलन।            अनिल कुमार मंडल         रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद ये मेरी मौलिक स्वरचित व अप्रकाशितरचना हैं।