सैया बहकत जाये

 सुन रे सखिया पीहर वाली

सैया बहकत जाये २

भोर भई मैं झाड़ू पोंछा २

खाट पड़े इतराई,

मौरा सैया बहकत जाए,


जब भी मौरा पल्लू ढलके २

दाँत मीचे ग़ुस्साये,

सैया रूठ ही जाये,

सैया बहकत जाए,


दिन भर घुमे ये तो निठल्ले,2

रोटी कहाँ से आये,

मौरा सैया बहकत जाए,2


मौरा कलेजा धक-धक धड़के,2

गौरी नारी कोई,पूछें तड़के,

व्याकुल हो मैं लिपटु उनसे,

सौतन न घर लाए,

मौरा सैया बहकत जाए।2


सांझ पहर ठेके पे जाके,2

जो भी बचा लुटाए,

मौरा सैया बहकत जाए,2

 

नशा चढ़े जब इनके ऊपर,2

औरन के बीबी सुपर-डुपर,

कह के मुझे चिढ़ाये,

मौरा सैया बहकत जाए।


सारे जुल्म मैं इनके सहूँगी,2

बिन रोटी के,मैं रह लूंगी,

सौतन सहा न जाये,

मौरा सैया रूठ ही जाए।2


सती सावित्री बनू तो कैसे,2

सैया चाहु राम के जैसे,

तभी तो दुःख बिसराए।

मौरा सैया बहकत जाए।2


सुन रे सखिया पीहर वाली

सैया बहकत जाये २

भोर भई मैं झाड़ू पोंछा २

खाट पड़े इतराई,

मौरा सैया बहकत जाए,


    अनिल कुमार मंडल

लोको पायलट/ग़ाज़ियाबाद

Comments

Popular posts from this blog

Best hindi poem -मजदूर

पुस में नूतन बर्ष

देख तेरे संसार की हालत