चितचोर
जब छाए बादल घनघोर, मौसम बन जाता चितचोर।
इस मौसम में नशा हैं ऐसा,चित हो जाता भावविभोर।
धन अर्जित कितना भी कर ले,कहाँ मिले ये लाख करोड़,
ऐसे में कोई चाय पीला दे, मैं भी नाचूँ करूंगा शोर।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
मुक्तक:-
मेरे घर में आग लगी हैं, तुम क्यों बैठे हो खामोश।
चिंगारी जब उड़े यहाँ से,फिर तेरे भी उड़ेगें होश।
छोड़ दे अब ये तेरा मेरा,दोनों मिलकर करें प्रयास।
बेशक घर जल जाये पुरा,नहीं रहे कोई अफसोस।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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