पुष्प चढ़ाए
आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को।
महीनों लड़ा जो मौत से कुश्ती, टाल रहा था काल को।
आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को।
बेला, जुही, पुष्प की कलिया कह रही मुझे न रोको तुम,
उनके कदमों में बिखरूँगी, तोडूंगी हर ढाल को।
मौत भँवर हैं सभी फंसेंगे, किसने रोका काल को।
आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए,भारत के उस लाल को।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
ये लोकतंत्र कोई पर्व नहीं, ये लुट का एक मसौदा हैं।
यहाँ देश बना हैं एक मंडी, जमीर का होता सौदा हैं।
हैं सबसे बड़ा ये झूठ यहाँ की भारत अब गणतंत्र हुआ,
कल गोरे केवल शासक थे, वो आज यहाँ के पुरोधा हैं।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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