अब तो शस्त्र उठाने दो
बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। देखो मेरी गई जवानी, बिटिया को समझाने दो। हर एक राह में बैठे दरिंदे, उसको ये बात बताने दो। मंदिर, मस्जिद,गुरुद्वारे से, तम को अभी मिटाने दो। शहर में घुमे पापी,नराधम का उसे बोध कराने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। द्वापद के गोविंदा थे रक्षक, कलयुग में खुद कर जाने दो। दिल्ली वालों वक़्त अभी हैं, एक विधयेक आने दो। नारी स्वयं की रक्षा हेतु, कर में शस्त्र सजाने दो। जिसने नर को जन्म दिया, उसे खुद की लाज बचाने दो। शुद्धिकरण होगा भारत का, एक कानुन बनाने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। न्याय से अभी उम्मीद हैं बांकी, ये मोह अभी मत जाने दो। नैतिकता जो नष्ट हो गई, पुनः जागरण लाने दो। पहले खुद की रक्षा खातिर, हर नारी को जगाने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो।2 अनिल कुमार मंडल रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद