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Showing posts from December, 2020

अब तो शस्त्र उठाने दो

 बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। देखो मेरी गई जवानी, बिटिया को समझाने दो। हर एक राह में बैठे दरिंदे, उसको ये बात बताने दो। मंदिर, मस्जिद,गुरुद्वारे से, तम को अभी मिटाने दो। शहर में घुमे पापी,नराधम का उसे बोध कराने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। द्वापद के गोविंदा थे रक्षक, कलयुग में खुद कर जाने दो। दिल्ली वालों वक़्त अभी हैं, एक विधयेक आने दो। नारी स्वयं की रक्षा हेतु, कर में शस्त्र सजाने दो। जिसने नर को जन्म दिया, उसे खुद की लाज बचाने दो। शुद्धिकरण होगा भारत का, एक कानुन बनाने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो। न्याय से अभी उम्मीद हैं बांकी, ये मोह अभी मत जाने दो। नैतिकता जो नष्ट हो गई, पुनः जागरण लाने दो। पहले खुद की रक्षा खातिर, हर नारी को जगाने दो। बहुत सहा संताप सखी रे, अब तो शस्त्र उठाने दो।2        अनिल कुमार मंडल     रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

जय जवान और जय किसान

 जय जवान और जय किसान के ओ काले हत्यारे सुन । अपना देश गुलाम की डगरी,उसपर तेरी कर्कश धुन। देश की जनता बेघर,भुखीचूस रहा क्यों उनका खून। ये मानव का धर्म नहीं है ये है असुरों का सद्गुण। ऊपर वाले से तो डर जा,मौत अटल है ध्यान से सुन। तेरे कर्म बस अपने तेरे,धन दौलत का छोड़ जुनून। झूठी काया,झुठी माया,झूठ के मत तुम सपने बुन। कर्म जगत में ऐसा कर ले मौत की आहट हो रुन-झुन। जब भी तेरा उठे जनाजा,नम आँखें गाये निर्गुण। स्वर्ग नरक दोनों कर तेरे ,तेरी मर्जी खुद से चुन । जय जवान और जय किसान,के ओ काले हत्यारे सुन।            अनिल कुमार मंडल            रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

बैंक हमारा

 बीते दिन को याद करू, आँचल में बैंक हमारा था। कभी वो खाली होती न थी, गठरी बड़ा ही न्यारा था। याद हैं माँ उस दिन की बातें, भालुवाला आया था। मिट्टी में मैं लेटा ,रोया , बटुआ ये खुलवाया था। दो चवन्नी तुमनें दी थी, और फिर ये समझाया था। तीसी बेच के बापु मेरा, दस रुपये लाया था। बापु की मेहनत की कमाई, अश्रु पे मेरे वारा था। मेरे अश्रु के बहते ही, खुलती थी बैंक हमारा था। याद करू उस दिन की बातें वही तो वक़्त हमारा था। बीते दिन को याद करू, आँचल में बैंक हमारा था। कभी वो खाली होती न थी, बटुआ बड़ा ही न्यारा था।                 अनिल कुमार मंडल              रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

शिक्षा संस्कार

 सत्ता मोह लंगोट के कच्चे,  उस पर देश पड़ा खामोश, युवा का संस्कार था बदला, पश्चिम पाते थे परितोष । गोरों की ये नहीं है गलती,  अपनों का था सारा दोष।  जब आई मैकाले शिक्षा, वहां पर पूर्वज थे खामोश।  अपनी संस्कृति बचा के रखते वही जताना था आक्रोश।  जब गोरों ने देश ये छोड़ा, जनता में था अद्भुत जोश। भारत था तब बांस लचीला, नर नारी में था संतोष । गुरुकुल शिक्षा शुरू कराते।  जनता दे देती धन कोष। युवा को मिलता नैतिक शिक्षा, पुनर्जन्म ले आते बोस । शिक्षा संग संस्कार भी पलता, सबकी इच्छा पाए मोक्ष।

रामसेतु

 सत्य सनातन अमर प्रेम चिरंतन जिनकी वाणी है।  जनक नंदिनी रामचंद्र की ऐसी प्रेम कहानी है । रामसेतु जो मीलों लंबा अद्भुत प्रेम निशानी है। सत्य सनातन अमर प्रेम चिरंतन जिनकी वाणी है। नए जमाने की यह मीनारें झूठी हैं जिनकी बुनियाद , उनकी तुलना राम सेतू से निश्चित ही बेईमानी है। रामसेतु जो मीलों लंबा अद्भुत प्रेम निशानी है । रचना इसकी ऐसी है कि,आज भी करती है हैरान  राम सेतु है प्रेम निशानी जन-जन तक बस लानी है।  सत्य सनातन अमर प्रेम चिरंतन प्रभु की वाणी है । जनक नंदनी रामचंद्र की ऐसी प्रेम कहानी है। संदेह करेंगे वही नास्तिक,जिसने राम को ना जाना,  मेरे लिए तो राम सत्य है ,जीवन, मरण, जवानी है। जनक नंदिनी रामचंद्र की ऐसी प्रेम कहानी है। सत्य सनातन अमर प्रेम दुनिया जिनकी दीवानी है। ऐसे प्रेम को झूठा कहना,दुष्टों की ये निशानी है। सत्य सनातन अमर प्रेम चिरंतन जिनकी वाणी है।  रामसेतु जो मीलों लंबा अद्भुत प्रेम निशानी है।2                           अनिल कुमार मंडल             ...