बैंक हमारा
बीते दिन को याद करू,
आँचल में बैंक हमारा था।
कभी वो खाली होती न थी,
गठरी बड़ा ही न्यारा था।
याद हैं माँ उस दिन की बातें,
भालुवाला आया था।
मिट्टी में मैं लेटा ,रोया ,
बटुआ ये खुलवाया था।
दो चवन्नी तुमनें दी थी,
और फिर ये समझाया था।
तीसी बेच के बापु मेरा,
दस रुपये लाया था।
बापु की मेहनत की कमाई,
अश्रु पे मेरे वारा था।
मेरे अश्रु के बहते ही,
खुलती थी बैंक हमारा था।
याद करू उस दिन की बातें
वही तो वक़्त हमारा था।
बीते दिन को याद करू,
आँचल में बैंक हमारा था।
कभी वो खाली होती न थी,
बटुआ बड़ा ही न्यारा था।
अनिल कुमार मंडल
रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद
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