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Showing posts from January, 2021

रनिंग

पैरों में छाले पड़ गए, पर भाग रहे थे। रातों में निशाचर की तरह जाग रहे थे। तकरीर अब वो देते हैं लॉबी पे बैठकर, जो कल तलक नौकरी में भी,बेदाग रहे थे। वो कहते हैं कि भत्तों पे अब हक नही मेरा, जिनके घरों में भत्तों से ही बाग लगे थे। शायद वो रनिंग छोड़ के गैरों के हो चले, जिनके रनिंग से गहरे कभी लाग रहे थे।                 अनिल कुमार मंडल            रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

सूखी रोटी

सूखी रोटी और चीथड़ों से,लु मैं प्रीत निभाए।  मोहे प्रीत में दोनों भाए 2   बस बालम गले लगाए ,  मोहे प्रीत में दोनों भाये। मोरा सुख-दुख सब बिसराये, 2  मैं ना चाहूं महल अटारी,2 प्रीत के गीत सुनाए, मोहे सूखी रोटी भाए। 2 कपड़ो,लत्तो कछु ना मांगू,2 चीथड़ों मोहे सुहाए , मैंने मन से प्रीत लगाए।2 मोहे प्रीत में दोनों भाये।2 नींद ना मांगे महल बिछोना 2  भुइया में सुख पाए ।  मोहे प्रीत में सब कुछ भाए। 2 सूखी रोटी और चीथड़ों से लु मैं प्रीत निभाये। मोहे प्रीत में दोनों भाये।  बस बालम गले लगाए, बस साजन गले लगाये। मोरा सुख दुःख सब बिसराये, मैं तो लुगी प्रीत निभाये।2               अनिल कुमार मंडल           रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

पंचतत्व की काया

पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान।  मरने से पहले रे मूरख भरले इसमें जान । बचपन छोड़ जवानी आई बन गया तू बलवान। पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान। धन दौलत सब यही रहेगा काहे का अभिमान।  जिसके खातिर महल सजाया पहुँचाये शमशान।  पंचतत्व की काया लेकर भटक गया इंसान।  रिश्ते नाते सभी है झूठे,कर्म तेरे हैं महान। नेक कर्म से कर पाए,बैकुंठ भी अपने नाम  पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान। मरने से पहले रे बंदे भर दे उसमें जान।  कर्म तुम्हारे सद्गुण होंगे,सत्य कर रख ले ध्यान। एक अटल है सत्य जगत,में बाकी सब बेजान।  मरने से पहले रे बंदे,भर ले खुद में जान। पंचतत्व की काया लेकर भटक रहा इंसान। सदियों तक तेरे कर्मों का करेंगे लोग बखान। तेरे मौत के बाद भी होंगे,तेरे ही जयगान।  पंचतत्व की काया लेकर मत बनना शैतान। बनने से पहले रे बंदे भर ले उसमें जान                              अनिल कुमार मंडल                            रेल चा...

मुक्तक

 1* चालीस के पार का प्यार निष्ठावान होता है।        सच कहता हूं इसी उम्र में प्यार जवान होता हैं। 2* जिनको सुन सुनकर हुए हम जफर,      वो चल बसे अब हमें छोड़ कर,        नम आंखें मेरी तलाशे उन्हें,       जो कहते थे बेटा,जाओ अब सुधर        जो कहते थे बेटा जाओ सुधर। 3* रोष में तेरी हार हैं, खो मत देना होश।      रोष जो मानव कर गया, खो देता हैं होश। 4* खुद से तु अंजान हैं, गैरों पर हैं वार,      मौत बाँटता जीव को,कैसे हो उद्धार। 5* मेरे घर मेंआग लगी जब, तुम क्यों बैठे थे खामोश।      चिंगारी जब उड़े यहाँ से, फिर तेरे भी उड़ेंगे होश।      छोड़ दे अब ये तेरा मेरा, दोनों मिलकर करें प्रयास,     बेसक हो जाये हार हमारी, किन्तु करें नही अफसोस।                  अनिल कुमार मंडल              रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद

मेरे बाद

मानवता का मोल हो, विवाद होना चाहिए।  सत्य क्या असत्य क्या संवाद होनी चाहिए।  मैंने जो भी लिख दिया है,मेरी भी तो जानिए,  मैं गलत तो मेरे पर भी दाग होनी चाहिए।  मैं भी मृतुलोक का ये जानते तो आप हैं। मैं रहूं या ना रहूं मेरे बाद होनी चाहिए।  हो सके मैं मंदबुद्धि अल्प ज्ञानी ही सही, चर्चा मेरी इस बात की दिन-रात होनी चाहिए।  मैं रहूं या ना रहूं मेरी बात होनी चाहिए।  मैं अकेला तुम भी तनहा स्वांस ले के जग में आया,  साथ में क्या जाएगा वो बात होनी चाहिए।  खाली हथेली बे बसन एक दिव्यता को संग ले, साथ में कुछ ले चले वह काज होनी चाहिए। किस्मत को है कोसते जो डर गया है वक्त से, वक्त को मुट्ठी में कर अंदाज होनी चाहिए।  इतिहास रचना है अगर तो लक्ष्य अपना साथ ले, रख नजर उस लक्ष्य पर की बाज होना चाहिए।  मैं रहूं या ना रहूं मेरे बात होनी चाहिए।  हम जहां के रंगरलिया में भ्रमित हैं इस कदर, क्या गलत है क्या सही संवाद होनी चाहिए।  मौत सच है जग हैं झूठा यह अटल एक सत्य हैं,  सत्कर्म की गठरी हमारे पास होनी चाहिए। माया में उलझे हैं ऐसे मौत की ना ...

तुम्ही ने दर्द दिया

तुम्हीं ने दर्द दिया है,तुम्ही दवा दे दो । कसमें तुम भूल के ना,हमको अब दगा दे दो।  तुमने जो दर्द दिया है,तुम्ही दवा दे दो। बयार ए उल्फत में,हम तो तेरे हो बैठे , चांद के साए में तुम,पलकों से हवा दे दो।  तुमने जो दर्द दिया है, तुम्ही दवा दे दो। गम ना हो मरने का बाहों में तेरे दम निकले, जुस्तजू पूरी हो मर्जी तेरी सजा दे दो।  तुमने जो दर्द दिया है,तुम्ही दबा दे दो। चांद जो सो गया हो आफताबी चादर में,  आंख मलते हुए तुम हमको भी सबा दे दो। तुमने जो दर्द दिया है,तुम्ही दवा दे दो। तुम तो कातिल हो मेरी चढ़ती जवानी के सनम,  जुबां से सच बता के महफिले फिजा दे दो।  तुमने जो दर्द दिया है,तुम्ही दवा दे दो।  आज की महफिल में प्यार ना रुसवा होवे,  मौत से पहले ना हमको सनम कजा दे दो।  तुमने जो दर्द दिया है,तुम्ही दवा दे दो। मौत से पहले में आवाज लगा लू ए सनम,  कातिल तो तुम हो लेकिन कत्ल की वजह दे दो। तुमने जो दर्द दिया है तुम्ही दवा दे दो।                    अनिल कुमार मंडल           ...

मैं तो चौकीदार हूँ

मैंने तो पहले ही कहा था, मैं तो चौकीदार हूं। मालिक कोई और यहां का, मैं ऐसी सरकार हूँ। मैंने तो पहले ही कहा था,मैं तो चौकीदार हूं। विश्वास भरा मैं झूठ बोलता ऐसा राजकुमार हूँ । मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। चाय से मेरा रिश्ता गहरा भाषण लच्छेदार हूँ।  मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। सत्ता अपने पास मैं रखता,मैं पीo सी सरकार हूँ।  मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। रिश्ते नाते छोड़ चुका हूं सेवक मैं होशियार हूँ।  मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। साफ छवि का नेता हूं हर दिन करता इकरार हूँ। मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। सरकारी सब बेच रहा हूँ ऎसा साहूकार हूँ। मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ।  रेल बेच दी,तेल बेच दी करता मैं व्यापार हूँ  मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। स्वदेशी की बात मैं करता, विदेशी से प्यार हूँ। मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। वर्ल्ड बैंक की शरण में जा के,लाता कर्ज उधार हूँ।  मैंने तो पहले ही कहा था मैं तो चौकीदार हूँ। मन की बातें करता रहता फिर भी मैं बेजा...

चाँद की चाँदनी

सज धज के निकलो ना जाने जिगर , चांद की चांदनी हो रही बेअसर। ना बादल घनेरे न बीजुरी असर, चांद की चांदनी हो रही बेअसर, सज धज के निकलो ना जाने जिगर।  वो कजरारी आंखें वो बालों पे गजरा,  तेरे रुख़ से गिरता वो अंगूरी मदिरा,  मेरे दिल पे गिरती है बन के कहर।  सज धज के निकलो न जाने जिगर, चांद की चांदनी हो रही बेअसर।  यौवन पे तेरे दुपट्टे का पहरा, लोचन हैं तेरे जो सागर से गहरी, मौज की भांति जाऊं मैं इसमें बिखर।  चांद की चांदनी हो रही बेअसर,  सज धज के निकलो न जाने जिगर। कमर तेरे लचके की सावन की डाली,  बशर के जहन में भी लाये लहर।  सज धज के निकलो न जाने जिगर, चांद की चांदनी हो रही बेअसर।  इबादत करूंगा मैं पाकर के तुझको,  खुदा ने नवाजा मुझे हमसफर। सज धज के निकलो ना जाने जिगर। ख्वाबों में मैंने तो बांधा है सेहरा, ना मिल पाई मुझ को तो पी लूं जहर। सज धज के निकलो न जाने जिगर, चांद की चांदनी हो रही बेअसर।2                अनिल कुमार मंडल।               रेल चालक/ग़ाज़ियाबाद